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इन्द्राया॑हि धि॒येषि॒तो विप्र॑जूतः सु॒ताव॑तः। उप॒ ब्रह्मा॑णि वा॒घतः॑ ॥८८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑। आ। या॒हि॒। धि॒या। इ॒षि॒तः। विप्र॑जूत॒ इति॒ विप्र॑ऽजूतः। सु॒ताव॑तः। सु॒तव॑त॒ इति॑ सु॒तऽव॑तः। उप॑। ब्रह्मा॑णि। वा॒घतः॑ ॥८८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:88


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वद्विषय अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) विद्या और ऐश्वर्य से युक्त (इषितः) प्रेरित और (विप्रजूतः) बुद्धिमानों से शिक्षा पाके वेगयुक्त (वाघतः) शिक्षा पाई हुई वाणी से जाननेहारा तू (धिया) सम्यक् बुद्धि से (सुतावतः) सिद्ध किये (ब्रह्माणि) अन्न और धनों को (उप, आ याहि) सब प्रकार से समीप प्राप्त हो ॥८८ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग जिज्ञासावाले पुरुषों से मिलके उन में विद्या के निधि को स्थापित करें ॥८८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

(इन्द्र) विद्यैश्वर्ययुक्त (आ) (याहि) (धिया) प्रज्ञया (इषितः) प्रेरितः (विप्रजूतः) विप्रैर्मेधाविभिर्जूतः शिक्षितः (सुतावतः) निष्पादितवतः (उप) (ब्रह्माणि) अन्नानि धनानि वा (वाघतः) यश्शिक्षया वाचा हन्ति जानाति सः ॥८८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! इषितो विप्रजूतो वाघतस्त्वं धिया सुतावतो ब्रह्माण्युपायाहि ॥८८ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वांसो जिज्ञासून् जनान् संगत्यैतेषु विद्याकोशं स्थापयन्तु ॥८८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान लोकांनी जिज्ञासू लोकांबरोबर संघटन करून विद्यारूपी संपत्तीचा निधी स्थापन करावा.