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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री लोगो ! जैसे (सरस्वती) वाणी (केतुना) उत्तम ज्ञान से (महः) बड़े (अर्णः) आकाश में स्थित शब्दरूप समुद्र को (प्रचेतयति) उत्तम प्रकार से जतलाती है और (विश्वाः) सब (धियः) बुद्धियों को (वि, राजति) नाना प्रकार से प्रकाशित करती है, वैसे विद्याओं में तुम प्रवृत्त होओ ॥८६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। कन्याओं को चाहिये कि ब्रह्मचर्य्य से विद्या और सुशिक्षा को समग्र ग्रहण करके अपनी बुद्धियों को बढ़ावें ॥८६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(महः) महत् (अर्णः) अन्तरिक्षस्थं शब्दसमुद्रम् (सरस्वती) वाणी (प्र, चेतयति) प्रज्ञापयति (केतुना) प्रज्ञानेन (धियः) बुद्धयः (विश्वाः) सर्वाः (वि) (राजति) प्रकाशयति ॥८६ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रियो ! यथा सरस्वती केतुना महो अर्णः प्रचेतयति, विश्वा धियो विराजति, तथा विद्यासु यूयं प्रवृत्ता भवत ॥८६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। कन्याभिर्ब्रह्मचर्येण विद्यासुशिक्षे पूर्णे संगृह्य बुद्धयो वद्धर्यितव्याः ॥८६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. मुलींनी ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्या व चांगले शिक्षण सम्यक रीतीने ग्रहण करून आपली बुद्धी वाढवावी.