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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब स्त्रियों की शिक्षा के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री लोगो ! जैसे (सूनृतानाम्) सुशिक्षा पाई हुई वाणियों को (चोदयित्री) प्रेरणा करनेहारी (सुमतीनाम्) शुभ बुद्धियों को (चेतन्ती) अच्छे प्रकार ज्ञापन करती (सरस्वती) उत्तम विज्ञान से युक्त हुई मैं (यज्ञम्) यज्ञ को (दधे) धारण करती हूँ, वैसे यह यज्ञ तुम को भी करना चाहिये ॥८५ ॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्रियों के बीच में विदुषी स्त्री हो, वह सब स्त्रियों को सदा सुशिक्षा करे, जिससे स्त्रियों में विद्या की वृद्धि हो ॥८५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ स्त्रीशिक्षाविषयमाह ॥
अन्वय:
(चोदयित्री) प्रेरयित्री (सूनृतानाम्) सुशिक्षितानां वाणीनाम् (चेतन्ती) संज्ञापयन्ती (सुमतीनाम्) शोभनानां बुद्धीनाम् (यज्ञम्) (दधे) धरामि (सरस्वती) प्रशस्तविज्ञानयुक्ता ॥८५ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रियो ! यथा सूनृतानां चोदयित्री सुमतीनां चेतन्ती सरस्वती सत्यहं यज्ञं दधे, तथायं युष्माभिरप्यनुष्ठेयः ॥८५ ॥
भावार्थभाषाः - या स्त्रीणां मध्ये विदुषी स्त्री स्यात्, सा सर्वाः स्त्रियः सदा सुशिक्षेत, यतः स्त्रीणां मध्ये विद्यावृद्धिस्स्यात् ॥८५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - (सर्व) स्रियांमध्ये जी सुशिक्षित स्री असेल तिने सर्व स्रियांना सुशिक्षित करावे म्हणजे स्रियांमध्ये विद्येची वाढ होईल.