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ता न॒ऽआ वो॑ढमश्विना र॒यिं पि॒शङ्ग॑सन्दृशम्। धिष्ण्या॑ वरिवो॒विद॑म् ॥८३ ॥

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पद पाठ

ता। नः॒। आ। वो॒ढ॒म्। अ॒श्वि॒ना॒। र॒यिम्। पि॒शङ्ग॑सन्दृश॒मिति॑ पि॒शङ्ग॑ऽसंदृशम्। धिष्ण्या॑। व॒रि॒वो॒विद॒मिति॑ वरिवः॒ऽविद॑म् ॥८३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:83


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) सभा और सेना के पालनेहारो ! (धिष्ण्या) जो बुद्धि के साथ वर्त्तमान (ता) वे तुम (नः) हम को (वरिवोविदम्) जिससे सेवन को प्राप्त हों और (पिशङ्गसंदृशम्) जो सुवर्ण के समान देखने में आता है, उस (रयिम्) धन को (आ, वोढम्) सब ओर से प्राप्त करो ॥८३ ॥
भावार्थभाषाः - सभापति और सेनापतियों को चाहिये कि राज्य के सुख के लिये सब ऐश्वर्य सिद्ध करें, जिससे सत्यधर्म का आचरण बढ़े ॥८३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ता) तौ (नः) अस्मान् (आ) (वोढम्) वहतम् (अश्विना) सभासेनेशौ (रयिम्) धनम् (पिशङ्गसंदृशम्) यः पिशङ्गवत् सुवर्णवत् सम्यग् दृश्यते सः (धिष्ण्या) धिषणया धिया (वरिवोविदम्) येन वरिवः परिचरणं विन्दन्ति तम् ॥८३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हेऽश्विना धिष्ण्या ता युवां नो वरिवोविदं पिशङ्गसंदृशं रयिमावोढम् ॥८३ ॥
भावार्थभाषाः - सभासेनेशै राज्यसुखाय सर्वमैश्वर्य्यं सम्पादनीयम्, येन सत्यधर्माचरणं वर्द्धेत ॥८३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व सेनापती यांनी राज्याच्या सुखासाठी सर्व ऐश्वर्य प्राप्त करावे. म्हणजे सर्वांकडून सत्यधर्माचे पालन होण्यास मदत होईल.