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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब राजधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषण्वसू) श्रेष्ठों को वास करानेहारे सभा और सेना के पति ! तुम (यत्) जिससे (दुःशंसः) दुःख से स्तुति करने योग्य (परः) अन्य (मर्त्यः) मनुष्य (रिपुः) शत्रु (न) न हो और (न) न (अन्तरः) मध्यस्थ हो कि जो हम को (आदधर्षत्) सब ओर से धर्षण करे, उसको अच्छे यत्न से वश में करो ॥८२ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों को चाहिये कि जो अति बलवान्, अत्यन्त दुष्ट शत्रु होवे, उसको बड़े यत्न से जीतें ॥८२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ राजधर्मविषयमाह ॥
अन्वय:
(न) (यत्) यस्मात् (परः) (न) (अन्तरः) मध्यस्थः (आदधर्षत्) आदधर्षीत् समन्ताद् धृष्णुयात् (वृषण्वसू) यौ वृष्णौ वासयतस्तौ (दुःशंसः) दुःखेन शासितुं योग्यः (मर्त्यः) मनुष्यः (रिपुः) शत्रुः ॥८२ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे वृषण्वसू सभासेनेशौ ! युवां यद् यस्माद् दुःशंसः परो मर्त्यो रिपुर्न स्यात्, नान्तरश्च योऽस्मानादधर्षत्, तं प्रयत्नतो वशं नयतम् ॥८२ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषैर्यः प्रबलो दुष्टतमः शत्रुर्भवेत् स प्रयत्नेन विजेतव्यः ॥८२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांनी अति बलवान व अत्यंत दुष्ट शत्रूंना प्रयत्नपूर्वक जिंकावे.