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पृ॒ष्ठीर्मे॑ रा॒ष्ट्रमु॒दर॒मꣳसौ॑ ग्री॒वाश्च॒ श्रोणी॑। ऊ॒रूऽअ॑र॒त्नी जानु॑नी॒ विशो॒ मेऽङ्गा॑नि स॒र्वतः॑ ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पृ॒ष्ठीः। मे॒। रा॒ष्ट्रम्। उ॒दर॑म्। अꣳसौ॑। ग्री॒वाः। च॒। श्रोणी॒ऽइति॒ श्रोणी॑। ऊ॒रूऽइत्यू॒रू। अ॒र॒त्नी। जानु॑नी॒ऽइति॒ जानु॑नी। विशः॑। मे॒। अङ्गा॑नि। स॒र्वतः॑ ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:8


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (मे) मेरा (राष्ट्रम्) राज्य (पृष्ठीः) पीठ (उदरम्) पेट (अंसौ) स्कन्ध (ग्रीवाः) कण्ठप्रदेश (श्रोणी) कटिप्रदेश (ऊरू) जङ्घा (अरत्नी) भुजाओं का मध्यप्रदेश और (जानुनी) गोड़ का मध्यप्रदेश तथा (सर्वतः) सब ओर से (च) और (अङ्गानि) अङ्ग (मे) मेरे (विशः) प्रजाजन हैं ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - जो अपने अङ्गों के तुल्य प्रजा को जाने, वही राजा सर्वदा बढ़ता रहता है ॥८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(पृष्ठीः) पृष्ठदेशः पश्चाद्भागः। अत्र सुपां सुलुग्० [अष्टा०७.१.३९] इति सोः स्थाने सुः (मे) (राष्ट्रम्) राजमानं राज्यम् (उदरम्) (अंसौ) बाहुमूले (ग्रीवाः) कण्ठप्रदेशाः (च) (श्रोणी) कटिप्रदेशौ (ऊरू) सक्थिनी (अरत्नी) भुजमध्यप्रदेशौ (जानुनी) ऊरूजङ्घयोर्मध्यभागौ (विशः) प्रजाः (मे) (अङ्गानि) अवयवाः (सर्वतः) सर्वाभ्यो दिग्भ्यस्सर्वेभ्यो देशेभ्यो वा ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! मे मम पृष्ठी राष्ट्रमुदरमंसौ ग्रीवाः श्रोणी ऊरू अरत्नी जानुनी सर्वतोऽन्यानि चाङ्गानि मे विशः सन्ति ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - यः स्वदेहाङ्गवत् प्रजाः जानीयात्, स एव राजा सर्वदा वर्द्धते ॥८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा प्रजेला स्वतःच्या शरीरावयवाप्रमाणे मानतो त्याच राजाची सदैव उन्नती होते.