वांछित मन्त्र चुनें

यु॒वꣳ सु॒राम॑मश्विना॒ नमु॑चावासु॒रे सचा॑। वि॒पि॒पा॒नाः सर॑स्व॒तीन्द्रं॒ कर्म॑स्वावत ॥७६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒वम्। सु॒राम॑म्। अ॒श्वि॒ना॒। नमु॑चौ। आ॒सु॒रे। सचा॑। वि॒पि॒पा॒ना इति॑ विऽपिपा॒नाः। स॒र॒स्व॒ति। इन्द्र॑म्। कर्म्म॒स्विति॒ कर्म॑ऽसु। आ॒व॒त॒ ॥७६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:76


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर प्रकारान्तर से विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) पालन आदि कर्म करनेहारे अध्यापक और उपदेशक ! (सचा) मिले हुए (युवम्) तुम दोनों और हे (सरस्वति) अतिश्रेष्ठ विज्ञानवाली प्रजा तू जैसे (नमुचौ) प्रवाह से नित्यरूप (आसुरे) मेघ में और (कर्मसु) कर्मों में (सुरामम्) अतिसुन्दर (इन्द्रम्) परमैश्वर्य का (आवत) पालन करते हो, वैसे (विपिपानाः) नाना प्रकार से रक्षा करनेहारे होते हुए आचरण करो ॥७६ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग पुरुषार्थ से बड़े ऐश्वर्य को प्राप्त होकर धन की रक्षा करके आनन्द को भोगते हैं, वे सदा ही बढ़ते हैं ॥७६ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रकारान्तरेण विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

(युवम्) युवाम् (सुरामम्) सुष्ठु रम्यम् (अश्विना) रक्षादिकर्मव्यापिनौ (नमुचौ) प्रवाहेण नित्यस्वरूपे (आसुरे) असुरो मेघ एव तस्मिन् (सचा) समवेताः (विपिपानाः) विविधरक्षादिकर्त्तारः। अत्र व्यत्ययेन लुग्विषये श्लुरात्मनेपदं च बहुलं छन्दसीतीत्वम् (सरस्वति) या प्रशस्तविज्ञानयुक्ता प्रजा तत्सम्बुद्धौ (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (कर्मसु) (आवत) पालयत ॥७६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विना ! सचा युवं हे सरस्वती त्वं च यथा नमुचावासुरे कर्मसु सुराममिन्द्रमावत तथा विपिपाना अप्याचरत ॥७६ ॥
भावार्थभाषाः - ये पुरुषार्थेन महदैश्वर्यं प्राप्य धनं सुरक्ष्याऽनन्दं भुञ्जते, ते सदैव वर्द्धन्ते ॥७६ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक पुरुषार्थाने ऐश्वर्य प्राप्त करून धनाचे रक्षण करतात ते आनंद उपभोगतात व त्यांची भरभराट होते.