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ता नास॑त्या सु॒पेश॑सा॒ हिर॑ण्यवर्त्तनी॒ नरा॑। सर॑स्वती ह॒विष्म॒तीन्द्र॒ कर्म॑सु नोऽवत ॥७४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। नास॑त्या। सु॒पेश॒सेति॑ सु॒ऽपेश॑सा। हिर॑ण्यवर्त्तनी॒ इति॒ हिर॑ण्यऽवर्त्तनी। नरा॑। सर॑स्वती। ह॒विष्म॑ती। इन्द्र॑। कर्म॒स्विति॒ कर्म॑ऽसु। नः॒। अ॒व॒त॒ ॥७४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:74


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवाले विद्वन् ! (ता) वे (नासत्या) असत्य आचरण से रहित (सुपेशसा) अच्छे रूप युक्त (हिरण्यवर्त्तनी) सुवर्ण का वर्त्ताव करनेहारी (नरा) सर्वगुणप्रापक पढ़ाने और उपदेश करनेवाली (हविष्मती) उत्तम ग्रहण करने योग्य पदार्थ जिसके विद्यमान वह (सरस्वती) विदुषी स्त्री और आप (कर्मसु) कर्मों में (नः) हमारी (अवत) रक्षा करो ॥७४ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे विद्वान् पुरुष पढ़ाने और उपदेश से सब को दुष्ट कर्मों से दूर करके अच्छे कर्मों में प्रवृत्त कर रक्षा करते हैं, वैसे ही ये सब के रक्षा करने योग्य हैं ॥७४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ता) तौ (नासत्या) असत्याचरणरहितौ (सुपेशसा) सुरूपौ (हिरण्यवर्त्तनी) यौ हिरण्यं सुवर्णं वर्तयतस्तौ (नरा) सर्वगुणानां नेतारौ (सरस्वती) विज्ञानवती (हविष्मती) प्रशस्तानि हवींष्यादातुमर्हाणि विद्यन्ते यस्याः सा (इन्द्र) ऐश्वर्य्यवन् (कर्मसु) (नः) अस्मान् (अवत) ॥७४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! विद्वंस्ता नासत्या सुपेशसा हिरण्यवर्त्तनी नराऽध्यापकोपदेशकौ हविष्मती सरस्वती स्त्री त्वं च कर्मसु नोऽवत ॥७४ ॥
भावार्थभाषाः - यथा विद्वांसोऽध्यापनोपदेशैः सर्वान् दुष्टकर्मभ्यो निवर्त्य श्रेष्ठेषु कर्मसु प्रवर्त्य रक्षन्ति, तथैवैते सर्वै रक्षणीयाः ॥७४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान पुरुष अध्ययन व उपदेश करून सर्वांना दुष्ट कर्मापासून दूर ठेवतात व चांगल्या कामास प्रवृत्त करून त्यांचे रक्षण करतात. सर्वांचे रक्षण करण्याची त्यांची योग्यता असते.