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व॑रुणः क्ष॒त्रमि॑न्द्रि॒यं भगे॑न सवि॒ता श्रिय॑म्। सु॒त्रामा॒ यश॑सा॒ बलं॒ दधा॑ना य॒ज्ञमा॑शत ॥७२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वरु॑णः। क्ष॒त्रम्। इ॒न्द्रि॒यम्। भगे॑न। स॒वि॒ता। श्रिय॑म्। सु॒त्रामेति॑ सु॒ऽत्रामा॑। यश॑सा। बल॑म्। दधा॑नाः। य॒ज्ञम्। आ॒श॒त॒ ॥७२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:72


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (वरुणः) उत्तम पुरुष (सविता) ऐश्वर्योत्पादक (सुत्रामा) अच्छे प्रकार रक्षा करनेहारा सभा का अध्यक्ष (भगेन) ऐश्वर्य्य के साथ वर्त्तमान (क्षत्रम्) राज्य और (इन्द्रियम्) मन आदि (श्रियम्) राज्यलक्ष्मी और (यज्ञम्) यज्ञ को प्राप्त होता है, वैसे (यशसा) कीर्ति के साथ (बलम्) बल को (दधानाः) धारण करते हुए तुम (आशत) प्राप्त होओ ॥७२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। ऐश्वर्य्य के विना राज्य, राज्य के विना राज्यलक्ष्मी और राज्यलक्ष्मी के विना भोग प्राप्त नहीं होते, इसलिये नित्य पुरुषार्थ करना चाहिये ॥७२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(वरुणः) उत्तमपुरुषः (क्षत्रम्) राज्यम् (इन्द्रियम्) मनआदिकम् (भगेन) ऐश्वर्येण (सविता) ऐश्वर्योत्पादकः (श्रियम्) राज्यलक्ष्मीम् (सुत्रामा) सुष्ठु त्राता (यशसा) कीर्त्या (बलम्) (दधानाः) (यज्ञम्) (आशत) व्याप्नुत ॥७२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वरुणः सविता सुत्रामा सूद्योगी सभेशो भगेन सह वर्त्तमानं क्षत्रमिन्द्रियं श्रियं यज्ञं च प्राप्नोति, तथा यशसा बलं दधानाः सन्तो यूयमाशत ॥७२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ऐश्वर्येण विना राज्यं राज्येन विना श्रीः श्रिया विनोपभोगाश्च न प्राप्यन्ते, तस्मान्नित्यं पुरुषार्थेन वर्त्तितव्यम् ॥७२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ऐश्वर्य मिळविल्याशिवाय राज्य मिळू शकत नाही. राज्याशिवाय लक्ष्मी मिळू शकत नाही. लक्ष्मीशिवाय भोग प्राप्त होऊ शकत नाहीत त्यासाठी नेहमी पुरुषार्थ करावा.