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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - (वरुणः) उत्तम (सविता) प्रेरक और (सुत्रामा) अच्छे प्रकार रक्षा करनेहारा जन (दाशुषे) देनेवाले (यजमानाय) यजमान के लिये (वसु) द्रव्य को (दधत्) धारण करता हुआ (नमुचेः) धर्म को नहीं छोड़नेवाले के (बलम्) बल और (इन्द्रियम्) अच्छी शिक्षा से युक्त मन का (आ, अदत्त) अच्छे प्रकार ग्रहण करे ॥७१ ॥
भावार्थभाषाः - देनेवाले पुरुष की अच्छे प्रकार सेवा करके उससे अच्छे पदार्थों को प्राप्त होकर जो सब के बल को बढ़ाता है, वह बलवान् होता है ॥७१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(सविता) प्रेरकः (वरुणः) उत्तमः (दधत्) धारणं कुर्वन् (यजमानाय) संगच्छमानाय (दाशुषे) दात्रे (आ) (अदत्त) आदद्यात् (नमुचेः) धर्ममत्यजतः (वसु) द्रव्यम् (सुत्रामा) सुष्ठु रक्षकः (बलम्) (इन्द्रियम्) सुशिक्षितं मनः ॥७१ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - वरुणस्सविता सुत्रामा दाशुषे यजमानाय वसु दधत् सन् नमुचेर्बलमिन्द्रियमादत्त ॥७१ ॥
भावार्थभाषाः - दातारं संसेव्य ततः पदार्थान् प्राप्य यः सर्वस्य बलं वर्द्धयति, स बलवाञ्जायते ॥७१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - दानी यजमानाचा जो चांगल्याप्रकारे प्रेरक व रक्षक असतो, तसेच त्यांच्याकडून निरनिराळे पदार्थ प्राप्त करून सर्वांचे बल वाढवितो तो बलवान असतो.