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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य लोगो ! (सचा) विद्या से युक्त (अश्विना) वैद्यकविद्या में चतुर अध्यापक और उपदेशक (उभा) दोनों (इन्द्रियैः) धनों से जिस (इन्द्रम्) बल आदि गुणों के धारण करनेहारे सोम को धारण करें, (तम्) उसको (सरस्वती) सत्य विज्ञान से युक्त स्त्री धारण करे और जिसको (पशवः) गौ आदि पशु धारण करें, उसको (हविषा) सामग्री से (दधानाः) धारण करते हुए जन (यज्ञे) यज्ञ में (अभ्यनूषत) सब ओर से प्रशंसा करें ॥६९ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग धर्म्म के आचरण से धन के साथ धन को बढ़ाते हैं, वे प्रशंसा को प्राप्त होते हैं ॥६९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वद्विषयमाह ॥
अन्वय:
(तम्) (इन्द्रम्) बलादिगुणधारकं सोमम् (पशवः) गवादयः (सचा) विद्यासमवेतौ (अश्विना) वैद्यकविद्यानिपुणावध्यापकोपदेशकौ (उभा) द्वौ (सरस्वती) सत्यविज्ञानयुक्ता (दधानाः) धरतः (अभि) सर्वतः (अनूषत) प्रशंसत (हविषा) सामग्र्या (यज्ञे) (इन्द्रियैः) धनैः ॥६९ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! सचाश्विनोभा इन्द्रियैर्यमिन्द्रं दध्याताम्, तं सरस्वती दध्यात्, यं च पशवो दध्युस्तं हविषा दधानाः सन्तो यज्ञेऽभ्यनूषत ॥६९ ॥
भावार्थभाषाः - ये धर्माचरणाद् धनेन धनं वर्द्धयन्ति, ते प्रशंसां प्राप्नुवन्ति ॥६९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक धर्मपूर्वक आचरण करून धनाची सतत वृद्धी करतात ते प्रशंसेस पात्र ठरतात.