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यम॒श्विना॒ सर॑स्वती ह॒विषेन्द्र॒मव॑र्द्धयन्। स बि॑भेद ब॒लं म॒घं नमु॑चावासु॒रे सचा॑ ॥६८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यम्। अ॒श्विना॑। सर॑स्वती। ह॒विषा॑। इन्द्र॑म्। अव॑र्द्धयन्। सः। बि॒भे॒द॒। ब॒लम्। म॒घम्। नमु॑चौ। आ॒सु॒रे। सचा॑ ॥६८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:68


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सचा) संयोग किये हुए (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक तथा (सरस्वती) विदुषी स्त्री (नमुचौ) नाशरहित कारण से उत्पन्न (आसुरे) मेघ में होने के निमित्त घर में (हविषा) अच्छी बनाई हुई होम की सामग्री से (यम्) जिस (इन्द्रम्) ऐश्वर्य को (अवर्द्धयन्) बढ़ाते (सः) वह (मघम्) परमपूज्य (बलम्) बल का (बिभेद) भेदन करे ॥६८ ॥
भावार्थभाषाः - जो ओषधियों के रस को कर्त्तव्यता के गुणों से उत्तम करे, वह रोग का नाश करनेहारा होवे ॥६८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यम्) (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (सरस्वती) विदुषी स्त्री (हविषा) सुसंस्कृतहोमसामग्र्या (इन्द्रम्) ऐश्वर्यम् (अवर्द्धयन्) वर्द्धयन्तु (सः) (बिभेद) भिन्द्यात् (बलम्) (मघम्) परमपूज्यम् (नमुचौ) अविनाशिकारणे (आसुरे) असुरे मेघे भवे (सचा) संयुक्तौ ॥६८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - स्रुचाऽश्विना सरस्वती च नमुचावासुरे हविषा यमिन्द्रमवर्द्धयन्, स मघं बलं बिभेद ॥६८ ॥
भावार्थभाषाः - यद्योषधिरसं क्रियागुणैरुत्तमं कुर्युस्तर्हि स रोगहन्ता स्यात् ॥६८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो कर्तव्य समजून उत्तम रीतीने औषधांचा रस तयार करतो तो रोगांचा नाश करतो.