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गोभि॒र्न सोम॑मश्विना॒ मास॑रेण परि॒स्रुता॑। सम॑धात॒ꣳ सर॑स्वत्या॒ स्वाहेन्द्रे॑ सु॒तं मधु॑ ॥६६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गोभिः॑। न। सोम॑म्। अ॒श्वि॒ना॒। मास॑रेण। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। सम्। अ॒धा॒त॒म्। सर॑स्वत्या। स्वाहा॑। इन्द्रे॑। सु॒तम्। मधु॑ ॥६६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:66


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) अच्छी शिक्षा पाये हुए वैद्यो ! (मासरेण) प्रमाणयुक्त मांड (परिस्रुता) सब ओर से मधुर आदि रस से युक्त (सरस्वत्या) अच्छी शिक्षा और ज्ञान से युक्त वाणी से और (स्वाहा) सत्यक्रिया से तथा (इन्द्रे) परमैश्वर्य्य के होते (गोभिः) गौओं से दुग्ध आदि पदार्थों को जैसे (न) वैसे (मधु) मधुर आदि गुणों से युक्त (सुतम्) सिद्ध किये (सोमम्) ओषधियों के रस को तुम (समधातम्) अच्छे प्रकार धारण करो ॥६६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। वैद्य लोग उत्तम हस्तक्रिया से सब ओषधियों के रस को ग्रहण करें ॥६६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(गोभिः) धेनुभिः (न) इव (सोमम्) ओषधिरसम् (अश्विना) सुशिक्षितौ वैद्यो (मासरेण) प्रमितेन मण्डेन। अत्र माङ् धातोरौणादिकः सरन् प्रत्ययः (परिस्रुता) सर्वतो मधुरादिरसयुक्तेन (सम्) (अधातम्) (सरस्वत्या) सुशिक्षाज्ञानयुक्तया वाचा (स्वाहा) सत्यया क्रियया (इन्द्रे) सति परमैश्वर्ये (सुतम्) निष्पादितम् (मधु) मधुरादिगुणयुक्तम् ॥६६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विना ! परिस्रुता मासरेण सरस्वत्या स्वाहेन्द्रे गोभिर्दुग्धादि न सुतं मधु सोमं युवां समधातम् ॥६६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। वैद्याः श्रेष्ठया हस्तक्रियया सर्वौषधिरसं संगृह्णीयुः ॥६६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. वैद्यांनी अत्यंत कौशल्याने सर्व औषधांचे रस तयार करावेत.