वांछित मन्त्र चुनें

अ॒श्विना॑ भेष॒जं मधु॑ भेष॒जं नः॒ सर॑स्वती। इन्द्रे॒ त्वष्टा॒ यशः श्रिय॑ꣳ रू॒पꣳरू॑पमधुः सु॒ते ॥६४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒श्विना॑। भे॒ष॒जम्। मधु॑। भे॒ष॒जम्। नः॒। सर॑स्वती। इन्द्रेः॑। त्वष्टा॑। यशः॑। श्रिय॑म्। रू॒पꣳरूप॒मिति॑ रू॒पम्ऽरू॑पम्। अ॒धुः॒। सु॒ते ॥६४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:64


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नः) हमारे लिये (अश्विना) विद्या सिखानेवाले अध्यापकोपदेशक (सरस्वती) विदुषी शिक्षा पाई हुई माता और (त्वष्टा) सूक्ष्मता करनेवाला ये विद्वान् लोग (सुते) उत्पन्न हुए (इन्द्रे) परमैश्वर्य्य में (भेषजम्) सामान्य और (मधु, भेषजम्) मधुरादि गुणयुक्त औषध (यशः) कीर्त्ति (श्रियम्) लक्ष्मी और (रूपं रूपम्) रूप रूप को (अधुः) धारण करने को समर्थ होवें ॥६४ ॥
भावार्थभाषाः - जब मनुष्य लोग ऐश्वर्य को प्राप्त होवें, तब इन उत्तम ओषधियों, कीर्त्ति और उत्तम शोभा को सिद्ध करें ॥६४ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अश्विना) विद्याशिक्षकौ (भेषजम्) औषधम् (मधु) मधुरादिगुणोपेतम् (भेषजम्) (नः) अस्मभ्यम् (सरस्वती) विदुषी शिक्षिता माता (इन्द्रे) परमैश्वर्ये (त्वष्टा) तनूकर्त्ता (यशः) (श्रियम्) लक्ष्मीम् (रूपं रूपम्) अत्र वीप्सायां द्वित्वम् (अधुः) दध्यासुः (सुते) निष्पादिते ॥६४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - नोऽश्विना सरस्वती त्वष्टा च विद्वांसः सुत इन्द्रे भेषजं मधु भेषजं यशः श्रियं रूपंरूपं चाऽधुः ॥६४ ॥
भावार्थभाषाः - यदा मनुष्या ऐश्वर्यं प्राप्नुयुस्तदैतान्युत्तमान्यौषधानि यशः सुशोभां च निष्पादयितुं शक्नुयुः ॥६४ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा माणसांना ऐश्वर्य प्राप्त होते तेव्हा उत्तम औषधे बाळगावी. कीर्ती व लक्ष्मी प्राप्त करावी.