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ति॒स्रस्त्रे॒धा सर॑स्वत्य॒श्विना॒ भार॒तीडा॑। ती॒व्रं प॑रि॒स्रुता॒ सोम॒मिन्द्रा॑य सुषुवु॒र्मद॑म् ॥६३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ति॒स्रः। त्रे॒धा। सर॑स्वती। अ॒श्विना॑। भार॑ती। इडा॑। ती॒व्रम्। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। सोम॑म्। इन्द्रा॑य। सु॒षु॒वुः॒। सु॒सु॒वु॒रिति॑ सुसुवुः। मद॑म् ॥६३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:63


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भैषज्यादि विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (सरस्वती) अच्छे प्रकार शिक्षा पाई हुई वाणी (भारती) धारण करनेहारी माता और (इडा) स्तुति के योग्य उपदेश करनेहारी ये (तिस्रः) तीन और (अश्विना) अच्छे दो वैद्य (इन्द्राय) ऐश्वर्य के लिये (परिस्रुता) सब ओर से झरने के साथ (तीव्रम्) तीव्रगुणस्वभाववाले (मदम्) हर्षकर्त्ता (सोमम्) ओषधि के रस वा प्रेरणा नाम के व्यवहार को (त्रेधा) तीन प्रकार से (सुषुवुः) उत्पन्न करें, वैसे तुम भी इसकी सिद्धि अच्छे प्रकार करो ॥६३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि सोम आदि ओषधियों के रस को सिद्ध कर उसको पीके शरीर का आरोग्य करके उत्तम वाणी, शुद्ध बुद्धि और यथार्थ वक्तृत्व शक्ति की उन्नति करें ॥६३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्भैषज्यादिविषयमाह ॥

अन्वय:

(तिस्रः) त्रित्वसंख्याविशिष्टाः (त्रेधा) त्रिभिः प्रकारैः (सरस्वती) सुशिक्षिता वाणी (अश्विना) सद्वैद्यौ (भारती) धारिका माता (इडा) स्तोतुं योग्योपदेशिका (तीव्रम्) तीव्रगुणस्वभावम् (परिस्रुता) परितः सर्वतः स्रवन्ति येन तेन (सोमम्) ओषधिरसं प्रेरणाख्यं व्यवहारं वा (इन्द्राय) ऐश्वर्य्याय (सुषुवुः) निष्पादयन्तु (मदम्) हर्षकम् ॥६३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा सरस्वती भारतीडा च तिस्रोऽश्विना चेन्द्राय परिस्रुता तीव्रं मदं सोमं त्रेधा सुषुवुस्तथा यूयमप्येनं सुषुनोत ॥६३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः सोमाद्योषधिरसं निर्माय पीत्वाऽऽरोग्यं कृत्वा वाचं धियं वक्तृत्वं चोन्नेनयम् ॥६३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी ‘सोम’ इत्यादी औषधांचा रस तयार करून तो प्यावा व शरीर निरोगी करावे. उत्तम वाणी, शुद्ध बुद्धी व यथार्थ वक्तृत्वशक्तीची वाढ करावी.