वांछित मन्त्र चुनें

पा॒तं नो॑ऽअश्विना॒ दिवा॑ पा॒हि नक्त॑ꣳ सरस्वति। दैव्या॑ होतारा भिषजा पा॒तमिन्द्र॒ꣳ सचा॑ सु॒ते ॥६२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पा॒तम्। नः॒। अ॒श्वि॒ना॒। दिवा॑। पा॒हि। नक्त॑म्। स॒र॒स्व॒ति॒। दैव्या॑। हो॒ता॒रा॒। भि॒ष॒जा॒। पा॒तम्। इन्द्र॑म्। सचा॑। सु॒ते ॥६२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:62


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वद्विषय में सामयिक रक्षा विषय और भैषज्यादि विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (दैव्या) दिव्य गुणयुक्त (अश्विना) पढ़ाने और उपदेश करनेवालो ! तुम लोग (दिवा) दिन में (नक्तम्) रात्रि में (नः) हमारी (पातम्) रक्षा करो। हे (सरस्वति) बहुत विद्याओं से युक्त माता ! तू हमारी (पाहि) रक्षा कर। हे (होतारा) सब लोगों को सुख देनेवाले (सचा) अच्छे मिले हुए (भिषजा) वैद्य लोगो ! तुम (सुते) उत्पन्न हुए इस जगत् में (इन्द्रम्) ऐश्वर्य्य देनेवाले सोमलता के रस की (पातम्) रक्षा करो ॥६२ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे अच्छे वैद्य रोग मिटानेवाली बहुत ओषधियों को जानते हैं, वैसे अध्यापक और उपदेशक और माता-पिता अविद्यारूप रोगों को दूर करनेवाले उपायों को जानें ॥६२ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषये सामयिकं रक्षादिविषयं भैषज्यादिविषयमाह ॥

अन्वय:

(पातम्) रक्षतम् (नः) अस्मान् (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (दिवा) दिवसे (पाहि) रक्ष (नक्तम्) रात्रौ (सरस्वति) बहुविद्यायुक्त मातः (दैव्या) दिव्यगुणसम्पन्नौ (होतारा) सर्वस्य सुखदातारौ (भिषजा) वैद्यौ (पातम्) रक्षतम् (इन्द्रम्) ऐश्वर्यप्रदं सोमरसम् (सचा) समवेतौ (सुते) उत्पन्नेऽस्मिञ्जगति ॥६२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे दैव्याऽश्विना युवां दिवा नक्तं नः पातम्। हे सरस्वति नः पाहि। हे होतारा सचा भिषजा सुत इन्द्र पातम् ॥६२ ॥
भावार्थभाषाः - यथा सद्वैद्या रोगनिवारकान्यौषधानि जानन्ति तथाऽध्यापकोपदेशकौ मातापितरौ चाऽविद्यारोगनिवारकानुपायाञ्जानन्तु ॥६२ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याप्रमाणे चांगले वैद्य रोग नाहिसे करणारे औषध जाणतात. त्याप्रमाणे अध्यापक व उपदेशक आणि माता-पिता इत्यादींनी अविद्यारूपी रोग दूर करण्याचे उपाय योजावेत.