वांछित मन्त्र चुनें

उ॒षासा॒नक्त॑मश्विना॒ दिवेन्द्र॑ꣳ सा॒यमि॑न्द्रि॒यैः। सं॒जा॒ना॒ने सु॒पेश॑सा॒ सम॑ञ्जाते॒ सर॑स्वत्या ॥६१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒षासा॑। उ॒षसेत्यु॒षसा॑। नक्त॑म्। अ॒श्वि॒ना॒। दिवा॑। इन्द्र॑म्। सा॒यम्। इ॒न्द्रि॒यैः। स॒ञ्जा॒ना॒ने इति॑ सम्ऽजाना॒ने। सु॒पेश॒सेति॑ सु॒ऽपेश॑सा। सम्। अ॒ञ्जा॒ते॒ऽइत्य॑ञ्जाते। सर॑स्वत्या ॥६१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:61


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् लोगो ! जैसे (सुपेशसा) अच्छे रूपवाले (अश्विना) सूर्य और चन्द्रमा (सरस्वत्या) अच्छी उत्तम शिक्षा पाई हुई वाणी से (उषासा) प्रभात (नक्तम्) रात्रि (सायम्) संध्याकाल और (दिवा) दिन में (इन्द्रियैः) जीव के लक्षणों से (इन्द्रम्) बिजुली को (संजानाने) अच्छे प्रकार प्रकट करते हुए (समञ्जाते) प्रसिद्ध हैं, वैसे तुम भी प्रसिद्ध होओ ॥६१ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रातःसमय रात्रि को और संध्याकाल दिन को निवृत्त करता है, वैसे विद्वानों को चाहिये कि अविद्या और दुष्ट शिक्षा का निवारण करके सब लोगों को सब विद्याओं की शिक्षा में नियुक्त करें ॥६१ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(उषासा) प्रभाते। अत्र अन्येषामपि० [अष्टा०६.३.१३७] इत्युपधादीर्घः (नक्तम्) रात्रौ (अश्विना) सूर्याचन्द्रमसौ (दिवा) दिने (इन्द्रम्) विद्युतम् (सायम्) संध्यासमये (इन्द्रियैः) इन्द्रस्य जीवस्य लिङ्गैः (संजानाने) (सुपेशसा) सुरूपौ (सम्) (अञ्जाते) प्रसिध्यतः (सरस्वत्या) प्रशस्तसुशिक्षातया वाचा ॥६१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वांसः ! यथा सुपेशसाऽश्विना सरस्वत्योषासा नक्तं सायं च दिवेन्द्रियैरिन्द्रं च संजानाने समञ्जाते, तथा यूयमपि प्रसिध्यत ॥६१ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथोषा रात्रिं सायं च दिनं निवर्त्तयति, तथा विद्वद्भिरविद्याकुशिक्षे निवार्य सर्वे विद्यासुशिक्षायुक्ताः सम्पादनीयाः ॥६१ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा प्रातःकाल रात्रीला नष्ट करतो व संध्याकाळ दिवस नष्ट करते तसे विद्वानांनी अविद्या, कुशिक्षण नष्ट करून सर्व लोकांना विद्येचे संस्कार द्यावेत.