वांछित मन्त्र चुनें

आ॒जुह्वा॑ना॒ सर॑स्व॒तीन्द्रा॑येन्द्रि॒याणि॑ वी॒र्य᳖म्। इडा॑भिर॒श्विना॒विष॒ꣳ समूर्ज॒ꣳ सꣳ र॒यिं द॑धुः ॥५८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒जुह्वा॒नेत्या॒ऽजुह्वा॑ना। सर॑स्वती। इन्द्रा॑य। इ॒न्द्रि॒याणि॑। वी॒र्य᳖म्। इडा॑भिः। अ॒श्विनौ॑। इष॑म्। सम्। ऊर्ज्ज॑म्। सम्। र॒यिम्। द॒धुः॒ ॥५८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:58


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आजुह्वाना) सब ओर से प्रशंसा की हुई (सरस्वती) उत्तम ज्ञानवती स्त्री (इन्द्राय) परमैश्वर्य्ययुक्त पति के लिये (इन्द्रियाणि) श्रोत्र आदि इन्द्रिय वा ऐश्वर्य्य उत्पन्न करनेहारे सुवर्ण आदि पदार्थों और (वीर्यम्) शरीर में बल के करनेहारे घृतादि का तथा (अश्विनौ) सूर्य-चन्द्र के सदृश वैद्यकविद्या के कार्य में प्रकाशमान वैद्यजन (इडाभिः) अति उत्तम औषधियों के साथ (इषम्) अन्न आदि पदार्थ (समूर्जम्) उत्तम पराक्रम और (रयिम्) उत्तम धर्मश्री को (संदधुः) सम्यक् धारण करें ॥५८ ॥
भावार्थभाषाः - वे ही उत्तम विद्यावान् हैं, जो मनुष्य के रोगों का नाश करके शरीर और आत्मा के बल को बढ़ाते हैं, वही पतिव्रता स्त्री जाननी चाहिये कि जो पति के सुख के लिये धन और घृत आदि वस्तु धर रखती है ॥५८ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(आजुह्वाना) समन्तात् शब्दायमाना (सरस्वती) प्रशस्तज्ञानवती स्त्री (इन्द्राय) परमैश्वर्ययुक्ताय पत्ये (इन्द्रियाणि) श्रोत्रादीनि, ऐश्वर्यजनकानि सुवर्णादीनि वा (वीर्यम्) शरीरबलकरं घृतादि (इडाभिः) प्रशंसिताभिरोषधीभिः (अश्विनौ) सूर्य्याचन्द्रमसाविव वैद्यकविद्याकार्ये प्रकाशमानौ (इषम्) अन्नादिकम् (सम्) (ऊर्जम्) पराक्रमम् (सम्) (रयिम्) धर्मश्रियम् (दधुः) दध्युः ॥५८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - आजुह्वाना सरस्वतीन्द्रायेन्द्रियाणि वीर्यं चाश्विनाविडाभिरोषधिभिरिषं समूर्जं रयिं च संदधुः ॥५८ ॥
भावार्थभाषाः - त एव विद्यावन्तः सन्ति ये मनुष्याणां रोगान् नाशयित्वा शरीरात्मबलमुन्नयन्ति। सैव पतिव्रता स्त्री ज्ञेया या पत्युः सुखाय धनघृतादि वस्तु स्थापयति ॥५८ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांच्या रोगांचा नाश करून शरीर व आत्म्याचे बल वाढवितात तेच खरे विद्वान वैद्य असतात. जी पतीच्या सुखासाठी धन व घृत इत्यादी वस्तू संग्रहित करते तीच खरी पतिव्रता स्री होय.