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त॒नू॒पा भि॒षजा॑ सु॒ते᳕ऽश्विनो॒भा सर॑स्वती। मध्वा॒ रजा॑सीन्द्रि॒यमिन्द्रा॑य प॒थिभि॑र्वहान् ॥५६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त॒नू॒पेति॑ तनू॒ऽपा। भि॒षजा॑। सु॒ते। अ॒श्विना॑। उ॒भा। सर॑स्वती। मध्वा॑। रजा॑सि। इ॒न्द्रि॒यम्। इन्द्रा॑य। प॒थिभि॒रिति॑ प॒थिऽभिः॑। व॒हा॒न् ॥५६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:56


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब इस प्रकृत विषय में वैद्यविद्या के संचार को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग जैसे (भिषजा) वैद्यकविद्या के जाननेहारे (तनूपा) शरीर के रक्षक (उभा) दोनों (अश्विना) शुभ गुण-कर्म-स्वभावों में व्याप्त स्त्री-पुरुष (सरस्वती) बहुत विज्ञानयुक्त वाणी (मध्वा) मीठे गुण से युक्त (सुते) उत्पन्न हुए इस जगत् में स्थित होके (पथिभिः) मार्गों से (इन्द्राय) राजा के लिये (रजांसि) लोकों और (इन्द्रियम्) धन को धारण करें, वैसे इनको (वहान्) प्राप्त हूजिये ॥५६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो स्त्री-पुरुष वैद्यकविद्या को न जानें तो रोगों के निवारण और शरीरादि की स्वस्थता को और धर्म व्यवहार में निरन्तर चलने को समर्थ नहीं होवें ॥५६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रकृतविषये वैद्यविद्यासंचरणमाह ॥

अन्वय:

(तनूपा) यौ तनुं पातस्तौ (भिषजा) वैद्यकविद्यावेत्तारौ (सुते) उत्पन्ने जगति (अश्विना) व्याप्तशुभगुणकर्मस्वभावौ (उभा) उभौ (सरस्वती) सरो बहु विज्ञानं विद्यते ययोस्तौ (मध्वा) मधुरेण द्रव्येण (रजांसि) लोकान् (इन्द्रियम्) धनम् (इन्द्राय) राज्ञे (पथिभिः) मार्गैः (वहान्) वहन्तु प्राप्नुवन्तु ॥५६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा भिषजा तनूपोभाश्विना विद्यासुशिक्षितौ स्त्रीपुरुषौ सरस्वती च मध्वा सुतेऽस्मिन् जगति स्थित्वा पथिभिरिन्द्राय रजांसीन्द्रियं च दध्यातां तथैतद् वहान् ॥५६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि स्त्रीपुरुषा वैद्यकविद्यां न जानीयुस्तर्हि रोगान्निवृत्तिं स्वास्थ्यसम्पादनं च कर्त्तुं धर्मे व्यवहारे निरन्तरं चरितुं च न शक्नुयुः ॥५६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे स्री-पुरुष वैद्यकशास्र जाणत नाहीत ते रोगांचे निवारण व शरीराची स्वच्छता आणि धर्मव्यवहाराचे पालन सतत करू शकत नाहीत.