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शिरो॑ मे॒ श्रीर्यशो॒ मुखं॒ त्विषिः॒ केशा॑श्च॒ श्मश्रू॑णि। राजा॑ मे प्रा॒णोऽअ॒मृत॑ꣳ स॒म्राट् चक्षु॑र्वि॒राट् श्रोत्र॑म् ॥५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शिरः॑। मे॒। श्रीः। यशः॑। मुख॑म्। त्विषिः॑। केशाः॑। च॒। श्मश्रू॑णि। राजा॑। मे॒। प्रा॒णः। अ॒मृत॑म्। स॒म्राडिति॑ स॒म्ऽराट्। चक्षुः॑। वि॒राडिति॑ वि॒ऽराट्। श्रोत्र॑म् ॥५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:5


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! राज्य में अभिषेक को प्राप्त हुए (मे) मेरी (श्रीः) शोभा और धन (शिरः) शिरस्थानी (यशः) सत्कीर्ति का कथन (मुखम्) मुखस्थानी (त्विषिः) न्याय के प्रकाश के समान (केशाः) केश (च) और (श्मश्रूणि) दाढ़ी-मूँछ (राजा) प्रकाशमान (मे) मेरा (प्राणः) प्राण आदि वायु (अमृतम्) मरणधर्मरहित चेतन ब्रह्म (सम्राट्) अच्छे प्रकार प्रकाशमान (चक्षुः) नेत्र (विराट्) विविध शास्त्रश्रवणयुक्त (श्रोत्रम्) कान है, ऐसा तुम लोग जानो ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - जो राज्य में अभिषिक्त राजा होवे सो शिर आदि अवयवों को शुभ कर्मों में प्रेरित रक्खे ॥५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(शिरः) उत्तमाङ्गम् (मे) मम (श्रीः) श्रीः शोभा धनं च (यशः) सत्कीर्तिकथनम् (मुखम्) आस्यम् (त्विषिः) न्यायप्रदीप्तिरिव (केशाः) (च) (श्मश्रूणि) मुखकेशाः (राजा) प्रकाशमानः (मे) (प्राणः) प्राणादिवायुः (अमृतम्) मरणधर्मरहितं चेतनं ब्रह्म (सम्राट्) सम्यक् प्रकाशमानम् (चक्षुः) नेत्रम् (विराट्) विविधशास्त्रश्रवणयुक्तम् (श्रोत्रम्) श्रवणेन्द्रियम् ॥५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! राज्येऽभिषिक्तस्य मे मम श्रीः शिरो यशो मुखं त्विषिः केशाः श्मश्रूणि च राजा मे प्राणोऽमृतं सम्राट् चक्षुर्विराट् श्रोत्रं चास्त्येवं यूयं जानीत ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - यो राज्येऽभिषिक्तस्स्यात्, स शिरआद्यवयवान् शुभकर्मसु प्रेरयेत् ॥५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राज्याभिषिक्त राजाने आपल्या सर्व इंद्रियांना व प्राणाला शुभ कर्मात प्रेरित करावे.