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को॑ऽसि कत॒मो᳖ऽसि॒ कस्मै॑ त्वा॒ काय॑ त्वा। सुश्लो॑क॒ सुम॑ङ्गल॒ सत्य॑राजन् ॥४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कः। अ॒सि॒। क॒त॒मः। अ॒सि॒। कस्मै॑। त्वा॒। काय॑। त्वा॒। सुश्लो॒केति॒ सुऽश्लो॑क। सुम॑ङ्ग॒लेति॒ सुऽम॑ङ्गल। सत्य॑राज॒न्निति॒ सत्य॑ऽराजन् ॥४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:4


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुश्लोक) उत्तम कीर्ति और सत्य बोलनेहारे (सुमङ्गल) प्रशस्त मङ्गलकारी कर्मों के अनुष्ठान करने और (सत्यराजन्) सत्यन्याय के प्रकाश करनेहारे ! जो तू (कः) सुखस्वरूप (असि) है, और (कतमः) अतिसुखकारी (असि) है, इससे (कस्मै) सुखस्वरूप परमेश्वर के लिये (त्वा) तुझको तथा (काय) परमेश्वर जिसका देवता उस मन्त्र के लिये (त्वा) तुझ को मैं अभिषेकयुक्त करता हूँ ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में पूर्व मन्त्र से (अभि, षिञ्चामि) इन पदों की अनुवृत्ति आती है। जो सब मनुष्यों के मध्य में अतिप्रशंसनीय होवे, वह सभापतित्व के योग्य होता है ॥४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(कः) सुखस्वरूपः (असि) (कतमः) अतिशयेन सुखकारी (असि) (कस्मै) सुखस्वरूप परमेश्वराय (त्वा) त्वाम् (काय) को ब्रह्म देवता यस्य वेदमन्त्रस्य तस्मै (त्वा) (सुश्लोक) शुभकीर्ते सत्यवाक् (सुमङ्गल) प्रशस्तमङ्गलाऽनुष्ठातः (सत्यराजन्) सत्यप्रकाशक ॥४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सुश्लोक सुमङ्गल सत्यराजन् ! यस्त्वं कोऽसि कतमोऽसि तस्मात् कस्मै त्वा काय त्वाऽहमभिषिञ्चामि ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र पूर्वमन्त्रादभिषिञ्चामीत्यभिसम्बध्यते। यः सर्वेषां मनुष्याणां मध्येऽतिप्रशंसनीयो भवेत्, स सभेशत्वमर्हेत् ॥४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात पूर्वीच्या मंत्रातील (अभि, षिञ्चामि) या पदांची अनुवृत्ती झालेली आहे. जो सर्व माणसांत अतिप्रशंसनीय असेल तो राजा बनण्यायोग्य असतो.