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समि॑द्ध॒ऽइन्द्र॑ऽउ॒षसा॒मनी॑के पुरो॒रुचा॑ पूर्व॒कृद्वा॑वृधा॒नः। त्रि॒भिर्दे॒वैस्त्रि॒ꣳशता॒ वज्र॑बाहुर्ज॒घान॑ वृ॒त्रं वि दुरो॑ ववार ॥३६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

समि॑द्ध॒ इति॒ सम्ऽइ॑द्धः। इन्द्रः॑। उ॒षसा॑म्। अनी॑के। पु॒रो॒रुचेति॑ पुरः॒ऽरुचा॑। पू॒र्व॒कृदिति॑ पूर्व॒ऽकृत्। व॒वृ॒धा॒नऽइति॑ ववृधा॒नः। त्रि॒भिरिति॑ त्रि॒ऽभिः। दे॒वैः। त्रि॒ꣳशता॑। वज्र॑बाहुरिति॒ वज्र॑ऽबाहुः। ज॒घान॑। वृ॒त्रम्। वि। दुरः॑। व॒वा॒र॒ ॥३६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:36


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (पूर्वकृत्) पूर्व करनेहारा (वावृधानः) बढ़ता हुआ (वज्रबाहुः) जिसके हाथ में वज्र है, वह (उषसाम्) प्रभात वेलाओं की (अनीके) सेना में जैसे (पुरोरुचा) प्रथम विथुरी हुई दीप्ति से (समिद्धः) प्रकाशित हुआ (इन्द्रः) सूर्य्य (त्रिभिः) तीन अधिक (त्रिंशता) तीस (देवैः) पृथिवी आदि दिव्य पदार्थों के साथ वर्त्तमान हुआ (वृत्रम्) मेघ को (जघान) मारता है, (दुरः) द्वारों को (वि, ववार) प्रकाशित करता है, वैसे अत्यन्त बलयुक्त योद्धाओं के साथ शत्रुओं को मार कर विद्या और धर्म के द्वारों को प्रकाशित कर ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्वान् लोग सूर्य के समान विद्या धर्म के प्रकाशक हों, विद्वानों के साथ शान्ति, प्रीति से सत्य और असत्य के विवेक के लिये संवाद कर अच्छे प्रकार निश्चय करके सब मनुष्यों को संशयरहित करें ॥३६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(समिद्धः) प्रदीप्तः (इन्द्रः) सूर्यः (उषसाम्) प्रभातानाम् (अनीके) सैन्ये (पुरोरुचा) प्राक् प्रसृतया दीप्त्या (पूर्वकृत्) पूर्वं करोतीति पूर्वकृत् (वावृधानः) वर्द्धमानः (त्रिभिः) (देवैः) (त्रिंशता) त्रयस्त्रिंशत्संख्याकैः पृथिव्यादिभिर्दिव्यैः पदार्थैः (वज्रबाहुः) वज्रो बाहौ यस्य सः (जघान) हन्ति (वृत्रम्) प्रकाशावरकं मेघम् (वि) विगतार्थे (दुरः) द्वाराणि (ववार) विवृणोति ॥३६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! पूर्वकृद्वावृधानो वज्रबाहुः सन्नुषसामनीके यथा पुरोरुचा समिद्ध इन्द्रस्त्रिभिरधिकैः त्रिंशता देवैः सह वर्त्तमानः सन् वृत्रं जघान दुरो वि ववार तथातिबलैर्योद्धृभिः सह शत्रून् हत्वा विद्याधर्मद्वाराणि प्रकाशितानि कुरु ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। विद्वांसः सूर्यवद्विद्याधर्मप्रकाशकाः स्युर्विद्वद्भिः सह शान्त्या प्रीत्या सत्याऽसत्ययोर्विवेकाय संवादान् कृत्वा सुनिश्चित्य सर्वान्निःसंशयाञ्जनान् कुर्युः ॥३६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वान लोकांनी सूर्याप्रमाणे विद्या व धर्माचा प्रसार करावा. शांती व प्रेम यासाठी विद्वानांबरोबर सत्या-सत्याचा विवेकपूर्ण संवाद करावा व चांगल्याप्रकारे निश्चय करून सर्व माणसांना संशयरहित बनवावे.