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बृ॒हदिन्द्रा॑य गायत॒ मरु॑तो वृत्र॒हन्त॑मम्। येन॒ ज्योति॒रज॑नयन्नृता॒वृधो॑ दे॒वं दे॒वाय॒ जागृ॑वि ॥३० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

बृ॒हत्। इन्द्रा॑य। गा॒य॒त॒। मरु॑तः। वृ॒त्र॒हन्त॑म॒मिति॑ वृत्र॒हन्ऽत॑मम्। येन॑। ज्योतिः॑। अज॑नयन्। ऋ॒ता॒वृधः॑। ऋ॒त॒वृध॒ इत्यृ॑त॒ऽवृधः॑। दे॒वम्। दे॒वाय॑। जागृ॑वि ॥३० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:30


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) विद्वान् लोगो ! (ऋतावृधः) सत्य के बढ़ानेहारे आप (येन) जिससे (देवाय) दिव्यगुणवाले (इन्द्राय) परमैश्वर्य्य से युक्त ईश्वर के लिये (देवम्) दिव्य सुख देनेवाले (जागृवि) जागरूक अर्थात् अतिप्रसिद्ध (ज्योतिः) तेज पराक्रम को (अजनयन्) उत्पन्न करें, उस (वृत्रहन्तमम्) अतिशय करके मेघहन्ता सूर्य्य के समान (बृहत्) बड़े सामगान को उक्त उस ईश्वर के लिये (गायत) गाओ ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि सर्वदा युक्त, आहार और व्यवहार से शरीर और आत्मा के रोगों का निवारण कर पुरुषार्थ को बढ़ा के परमेश्वर का प्रतिपादन करनेहारे गान को किया करें ॥३० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(बृहत्) महत् साम (इन्द्राय) परमैश्वर्ययुक्ताय (गायत) प्रशंसत (मरुतः) विद्वांसः (वृत्रहन्तमम्) यो वृत्र मेघं हन्ति तमतिशयितं सूर्यमिव (येन) (ज्योतिः) तेजः (अजनयन्) उत्पादयन्तु (ऋतावृध) ये ऋतं सत्यं वर्द्धयन्ति ते (देवम्) दिव्यसुखप्रदम् (देवाय) दिव्यगुणाय (जागृवि) जागरूकम् ॥३० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मरुतः ! ऋतावृधो भवन्तो येन देवायेन्द्राय देवं जागृवि ज्योतिरजनयँस्तद् वृत्रहन्तमं बृहत् तस्मै गायत ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः सदैव युक्ताहारविहारेण शरीरात्मरोगान् निवार्य पुरुषार्थमुन्नीय परमेश्वरप्रतिपादकं गानं कर्त्तव्यम् ॥३० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी नेहमी युक्त आहार, विहार करून शरीर व आत्म्याचे रोगनिवारण करून पुरुषार्थ वाढवावा व परमेश्वराचे प्रतिपादन करणारे गान गावे.