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धा॒नाव॑न्तं कर॒म्भिण॑मपू॒पव॑न्तमु॒क्थिन॑म्। इन्द्र॑ प्रा॒तर्जु॑षस्व नः ॥२९ ॥

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पद पाठ

धा॒नाव॑न्त॒मिति॑ धा॒नाऽव॑न्तम्। क॒र॒म्भिण॑म्। अ॒पू॒पव॑न्त॒मित्य॑पू॒पऽव॑न्तम्। उ॒क्थिन॑म्। इन्द्र॑। प्रा॒तः। जु॒ष॒स्व॒। नः॒ ॥२९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:29


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) सुख की इच्छा करनेहारे विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त जन ! तू (नः) हमारे (धानावन्तम्) अच्छे प्रकार संस्कार किये हुए धान्य अन्नों से युक्त और (करम्भिणम्) अच्छी क्रिया से सिद्ध किये और (अपूपवन्तम्) सुन्दरता से संपादित किये हुए मालपुए आदि से युक्त तथा (उक्थिनम्) उत्तम वाक्य से उत्पन्न हुए बोध को सिद्ध करानेहारे और भक्ष्य आदि से युक्त भोजन-योग्य अन्न रसादि को (प्रातः) प्रातःकाल (जुषस्व) सेवन किया कर ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्या के पढ़ाने और उपदेशों से सब को सुभूषित और विश्व का उद्धार करनेहारे विद्वान् जन अच्छे संस्कार किये हुए रसादि पदार्थों से युक्त अन्नादि को ठीक समय में भोजन करते हैं और जो उनको विद्या सुशिक्षा से युक्त वाणी का ग्रहण करावें, वे धन्यवाद के योग्य होते हैं ॥२९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(धानावन्तम्) सुसंस्कृतैर्धान्यान्नैर्युक्तम् (करम्भिणम्) सुष्ठु क्रियया निष्पन्नम् (अपूपवन्तम्) सुष्ठु सम्पादितापूपसहितम् (उक्थिनम्) प्रशस्तोक्थवाक्यजन्यबोधनिष्पादितम् (इन्द्र) सुखेच्छो विद्यैश्वर्ययुक्तजन (प्रातः) प्रभाते (जुषस्व) सेवस्व (नः) अस्माकम् ॥२९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! त्वं नो धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनं भक्ष्याद्यन्वितं भोज्यमन्नरसादिकं प्रातर्जुषस्व ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - ये विद्याध्यापनोपदेशैः सर्वेषामलङ्कर्त्तारो विश्वोद्धारका विद्वांसो जनाः सुसंस्कृतै रसादिभिर्युक्तान्यन्नादीनि यथासमयं भुञ्जते, ये च तान् विद्यासुशिक्षायुक्तां वाचं ग्राहयेयुस्ते धन्यवादार्हा जायन्ते ॥२९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान अध्यापन व उपदेश यांनी सर्वांना सुशोभित करतात ते विश्वाचा उद्धार करून संस्कार केलेल्या अन्नरसयुक्त पदार्थांचे वेळेवर भोजन करतात. जे त्यांना विद्या व प्रशिक्षित वाणीचा अंगीकार करावयास लावतात ते धन्यवादास पात्र ठरतात.