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अ॒ꣳशुना॑ ते अ॒ꣳशुः पृ॑च्यतां॒ परु॑षा॒ परुः॑। ग॒न्धस्ते॒ सोम॑मवतु॒ मदा॑य॒ रसो॒ऽअच्यु॑तः ॥२७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ꣳशुना॑। ते॒। अ॒ꣳशुः। पृ॒च्य॒ता॒म्। परु॑षा। परुः॑। ग॒न्धः। ते॒। सोम॑म्। अ॒व॒तु॒। मदा॑य। रसः॑। अच्युतः॑ ॥२७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:27


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! (ते) तेरे (अंशुना) भाग से (अंशुः) भाग और (परुषा) मर्म से (परुः) मर्म (पृच्यताम्) मिले तथा (ते) तेरा (अच्युतः) नाशरहित (गन्धः) गन्ध और (रसः) रस पदार्थ सार (मदाय) आनन्द के लिये (सोमम्) ऐश्वर्य की (अवतु) रक्षा करे ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - जब ध्यानावस्थित मनुष्य के मन के साथ इन्द्रियाँ और प्राण ब्रह्म में स्थिर होते हैं, तभी वह नित्य आनन्द को प्राप्त होता है ॥२७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अंशुना) भागेन (ते) तव (अंशुः) भागः (पृच्यताम्) सम्बध्यताम् (परुषा) मर्मणा (परुः) मर्म्म (गन्धः) (ते) तव (सोमम्) ऐश्वर्यम् (अवतु) (मदाय) आनन्दाय (रसः) सारः (अच्युतः) नाशरहितः ॥२७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! ते तवांऽशुनांऽशुः परुषा परुः पृच्यताम्, तेऽच्युतो गन्धो रसश्च मदाय सोममवतु ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - यदा ध्यानावस्थितस्य मनुष्यस्य मनसा सहेन्द्रियाणि प्राणाश्च ब्रह्मणि स्थिरा भवन्ति, तदा स नित्यमानन्दति ॥२७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा ध्यानावस्थित अवस्थेत माणसाच्या मनाबरोबरच इंद्रिये व प्राण ब्रह्मात स्थित होतात तेव्हाच तो नित्य आनंद प्राप्त करू शकतो.