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यत्र॒ ब्रह्म॑ च क्ष॒त्रं च॑ स॒म्यञ्चौ॒ चर॑तः स॒ह। तं लो॒कं पुण्यं॒ प्रज्ञे॑षं॒ यत्र॑ दे॒वाः स॒हाग्निना॑ ॥२५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्र॑। ब्रह्म॑। च॒। क्ष॒त्रम्। च॒। स॒म्यञ्चौ॑। चर॑तः। स॒ह। तम्। लो॒कम्। पुण्य॑म्। प्र। ज्ञे॒ष॒म्। यत्र॑। दे॒वाः। स॒ह। अ॒ग्निना॑ ॥२५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:25


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे मैं (यत्र) जिस परमात्मा में (ब्रह्म) ब्राह्मण अर्थात् विद्वानों का कुल (च) और (क्षत्रम्) विद्या, शौर्यादि गुणयुक्त क्षत्रियकुल ये दोनों (सह) साथ (सम्यञ्चौ) अच्छे प्रकार प्रीतियुक्त (च) तथा वैश्य आदि के कुल (चरतः) मिलकर व्यवहार करते हैं और (यत्र) जिस ब्रह्म में (देवाः) दिव्यगुणवाले पृथिव्यादि लोक वा विद्वान् जन (अग्निना) बिजुली रूप अग्नि के (सह) साथ वर्तते हैं, (तम्) उस (लोकम्) देखने के योग्य (पुण्यम्) सुखस्वरूप निष्पाप परमात्मा को (प्र, ज्ञेषम्) जानूँ, वैसे तुम लोग भी इस को जानो ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो ब्रह्म एक चेतनमात्र स्वरूप, सब का अधिकारी, पापरहित, ज्ञान से देखने योग्य, सर्वत्र व्याप्त, सब के साथ वर्त्तमान है, वही सब मनुष्यों का उपास्य देव है ॥२५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यत्र) यस्मिन् ब्रह्मणि (ब्रह्म) ब्राह्मणकुलमर्थाद् विद्वत्कुलम् (च) (क्षत्रम्) क्षत्रियकुलमर्थाद् विद्याशौर्यादिगुणोपेतम् (च) वैश्यादिकुलानि (सम्यञ्चौ) सम्यगेकीभावेनाञ्चतस्तौ (चरतः) वर्त्तेते (सह) सार्द्धम् (तम्) (लोकम्) द्रष्टव्यम् (पुण्यम्) निष्पापं सुखस्वरूपम् (प्र) (ज्ञेषम्) जानीयाम्। जानातेर्लेटि सिपि रूपम् (यत्र) (देवाः) दिव्याः पृथिव्यादयो विद्वांसो वा (सह) (अग्निना) विद्युता ॥२५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथाऽहं यत्र ब्रह्म च क्षत्रं सह सम्यञ्चौ च चरतो यत्र देवा अग्निना सह वर्त्तन्ते, तं लोकं पुण्यं प्रज्ञेषम्, तथा यूयमप्येतं विजानीत ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यद् ब्रह्मैकचेतनमात्रं सर्वेषामधिकारि निष्पापं ज्ञानेन द्रष्टुं योग्यं सर्वत्राऽभिव्याप्तं सहचरितं वर्तते, तदेव सर्वैरुपास्यम् ॥२५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे ब्रह्म एक चेतनस्वरूप, सर्वांमध्ये अधिष्ठित, पापरहित, ज्ञानाने पाहण्यायोग्य, सर्वत्र व्याप्त, सर्वांमध्ये व्याप्त असते तेच सर्वांचे उपास्यदेव असते.