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निष॑साद धृ॒तव्र॑तो॒ वरु॑णः प॒स्त्या᳕स्वा। साम्रा॑ज्याय सु॒क्रतुः॑। मृ॒त्योः पा॑हि वि॒द्योत् पा॑हि ॥२ ॥

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पद पाठ

नि। स॒सा॒द॒। धृ॒तव्र॑त॒ इति॑ धृ॒तऽव्र॑तः। वरु॑णः। प॒स्त्या᳕सु। आ। साम्रा॑ज्या॒येति॒ साम्ऽरा॑ज्याय। सु॒क्रतु॒रिति॑ सु॒ऽक्रतुः॑। मृ॒त्योः। पा॒हि॒। वि॒द्योत्। पा॒हि॒ ॥२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:2


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सभापति ! आप (सुक्रतुः) उत्तम बुद्धि और कर्मयुक्त (धृतव्रतः) सत्य का धारण करनेहारे (वरुणः) उत्तम स्वभावयुक्त होते हुए (साम्राज्याय) भूगोल मे चक्रवर्त्ती राज्य करने के लिये (पस्त्यासु) न्यायघरों में (आ, नि, षसाद) निरन्तर स्थित हूजिये तथा हम वीरों की (मृत्योः) मृत्यु से (पाहि) रक्षा कीजिये और (विद्योत्) प्रकाशमान अग्नि अस्त्रादि से (पाहि) रक्षा कीजिये ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - जो धर्मयुक्त गुण-कर्म-स्वभाववाला न्यायाधीश सभापति होवे, सो चक्रवर्त्ती राज्य और प्रजा की रक्षा करने को समर्थ होता है, अन्य नहीं ॥२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(नि) नित्यम् (ससाद) सीद (धृतव्रतः) धृतं व्रतं सत्यं येन (वरुणः) उत्तमस्वभावः (पस्त्यासु) न्यायगृहेषु (आ) समन्तात् (साम्राज्याय) भूगोले चक्रवर्त्तिराज्यकरणाय (सुक्रतुः) शोभनकर्मप्रज्ञः (मृत्योः) अल्पमृत्युना प्राणत्यागात् (पाहि) रक्ष (विद्योत्) दीप्यमानाग्न्यास्त्रादेः। अत्र द्युतधातोर्विच् (पाहि) रक्ष ॥२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सभेश ! भवान् सुक्रतुर्धृतव्रतो वरुणः सन् साम्राज्याय पस्त्यास्वा निषसाद। अस्मान् वीरान् मृत्योः पाहि विद्योत् पाहि ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - यो धर्म्यगुणकर्मस्वभावो न्यायाधीशः सभेशो भवेत्, स चक्रवर्त्तिराज्यं कर्त्तुं प्रजाश्च रक्षितुं शक्नोति, नेतरः ॥२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - धार्मिक गुण, कर्म, स्वभावाचा असा जो न्यायी राजा असतो तो प्रजेचे रक्षण करण्यास समर्थ असतो, अन्य नव्हे.