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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (यदि) जो (जाग्रत्) जाग्रत् अवस्था और (यदि) जो (स्वप्ने) स्वप्नावस्था में (एनांसि) अपराधों को (वयम्) हम (चकृम) करें, (तस्मात्) उस (विश्वात्) समग्र (एनसः) पाप और (अंहसः) प्रमाद से (सूर्यः) सूर्य के समान वर्त्तमान आप (मा) मुझको (मुञ्चतु) पृथक् करें ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - जिस किसी दुष्ट चेष्टा को मनुष्य लोग करें, विद्वान् लोग उस चेष्टा से उन सब को शीघ्र निवृत्त करें ॥१६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(यदि) (जाग्रत्) जागरणे (यदि) (स्वप्ने) निद्रायाम् (एनांसि) (चकृम) अत्रापि पूर्ववद् दीर्घः (वयम्) (सूर्यः) सवितृवद्वर्त्तमानः (मा) माम् (तस्मात्) (एनसः) (विश्वात्) (मुञ्चतु) (अंहसः) ॥१६ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यदि जाग्रद् यदि स्वप्न एनांसि वयं चकृम, तस्माद् विश्वादेनसोंऽहसश्च सूर्य इव भवान् मा मुञ्चतु ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - यां काञ्चिद् दुश्चेष्टां जनाः कुर्युर्विद्वांसस्तस्यास्तान् सर्वान् सद्यो निवारयेयुः ॥१६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे दुष्ट कृत्ये करतात त्यांना विद्वान लोकांनी त्यापासून दूर करावे.