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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (यदि) जो (दिवा) दिवस में (यदि) जो (नक्तम्) रात्रि में (एनांसि) अज्ञात अपराधों को (वयम्) हम लोग (चकृम) करें, (तस्मात्) उस (विश्वात्) समग्र (एनसः) अपराध और (अंहसः) दुष्ट व्यसन से (मा) मुझे (वायुः) वायु के समान वर्त्तमान आप्त (मुञ्चतु) पृथक् करे ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - जो दिवस और रात्रि में अज्ञान से पाप करें, उस पाप से भी सब शिष्यों को शिक्षक लोग पृथक् किया करें ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(यदि) (दिवा) दिवसे (यदि) (नक्तम्) रात्रौ (एनांसि) अपराधान् (चकृम) अत्र पूर्ववद् दीर्घः। (वयम्) (वायुः) वायुरिव वर्त्तमान आप्तः (मा) माम् (तस्मात्) (एनसः) (विश्वात्) (मुञ्चतु) (अंहसः) ॥१५ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यदि दिवा यदि नक्तमेनांसि वयं चकृम, तस्माद् विश्वादेनसोंऽहसश्च मा वायुर्मुञ्चतु ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - यदहोरात्रे अज्ञानात् पापं कुर्य्युस्तस्मादपि पापात् सर्वान् शिष्यान् शिक्षकाः पृथक् कुर्वन्तु ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे शिष्य अज्ञानामुळे दिवसा व रात्री पाप करतात त्यांना शिक्षकांनी त्या पापांपासून दूर करावे.