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यद्दे॑वा देव॒हेड॑नं॒ देवा॑सश्चकृ॒मा व॒यम्। अ॒ग्निर्मा॒ तस्मा॒देन॑सो॒ विश्वा॑न्मुञ्च॒त्वꣳह॑सः ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। दे॒वाः॒। दे॒व॒हेड॑न॒मिति॑ देव॒ऽहेड॑नम्। देवा॑सः। च॒कृ॒म। व॒यम्। अ॒ग्निः। मा॒। तस्मा॑त्। एन॑सः। विश्वा॑त्। मु॒ञ्च॒तु॒। अꣳह॑सः ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! (यत्) जो (वयम्) हम (देवाः) अध्यापक और उपदेशक, विद्वान् तथा अन्य (देवासः) विद्वान् लोग परस्पर (देवहेडनम्) विद्वानों का अनादर (चकृम) करें, (तस्मात्) उस (विश्वात्) समस्त (एनसः) अपराध और (अंहसः) दुष्ट व्यसन से (अग्निः) पावक के समान सब विद्याओं में प्रकाशमान आप (मा) मुझको (मुञ्चतु) पृथक् करो ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - जो कभी अकस्मात् भ्रान्ति से किसी विद्वान् का अनादर कोई करे तो उसी समय क्षमा करावे। जैसे अग्नि सब पदार्थों में प्रविष्ट हुआ सब को अपने स्वरूप में स्थिर करता है, वैसे विद्वान् को चाहिये कि सत्य के उपदेश से असत्याचरण से पृथक् और सत्याचार में प्रवृत्त करके सब को धार्मिक करें ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यत्) ये (देवाः) अध्यापकोपदेशका विद्वांसः (देवहेडनम्) देवानां हेडनमनादरम् (देवासः) विद्वांसः (चकृम) कुर्याम। अत्र संहितायाम् [अष्टा०६.३.११४] इति दीर्घः। (वयम्) (अग्निः) अग्निरिव सर्वासु विद्यासु देदीप्यमानो विद्वान् (मा) माम् (तस्मात्) (एनसः) अपराधात् (विश्वात्) समग्रात् (मुञ्चतु) पृथक् करोतु (अंहसः) दुष्टाद् व्यसनात् ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यद् वयं देवा अन्ये देवासश्च परस्परं देवहेडनं चकृम, तस्माद् विश्वादेनसोंऽहसश्चाग्निर्मा मुञ्चतु ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - यदि कदाचिदकस्माद् भ्रान्त्या कस्यापि विदुषोऽनादरं कश्चित् कुर्यात्, तर्हि तदैव क्षमां कारयेत्। यथाग्निः सर्वेषु प्रविष्टः सन् सर्वान् स्वस्वरूपस्थान् करोति, तथा विदुषा सत्योपदेशेनासत्याचाराद् वियोज्य सत्याचारे प्रवर्त्य सर्वे धार्मिकाः कार्य्याः ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर एखाद्याने एखाद्या वेळी एखाद्या विद्वानाचा चुकून जरी अनादर केला तरी तात्काळ त्याला क्षमा मागावयास लावावे. जसा अग्नी सर्व पदार्थात प्रविष्ठ होऊन सर्वांना आपल्या स्वरूपात स्थिर करतो तसे विद्वानांनी सत्याच्या उपदेशाने असत्याचरणापासून पृथक व सत्याचरणात प्रवृत्त करून सर्वांना धार्मिक बनवावे.