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प्र॒थ॒मा द्वि॒तीयै॑र्द्वि॒तीया॑स्तृ॒तीयै॑स्तृ॒तीयाः॑ स॒त्येन॑ स॒त्यं य॒ज्ञेन॑ य॒ज्ञो यजु॑र्भि॒र्यजू॑षि॒ साम॑भिः॒ सामा॑न्यृ॒ग्भिर्ऋचः॑। पुरोऽनुवा॒क्या᳖भिः पुरोऽनुवा॒क्या᳖ या॒ज्या᳖भिर्या॒ज्या᳖ वषट्का॒रैर्व॑षट्का॒राऽ आहु॑तिभि॒राहु॑तयो मे॒ कामा॒न्त्सम॑र्धयन्तु॒ भूः स्वाहा॑ ॥१२ ॥

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पद पाठ

प्र॒थ॒मा। द्वि॒तीयैः॑। द्वि॒तीयाः॑। तृ॒तीयैः॑। तृ॒तीयाः॑। स॒त्येन॑। स॒त्यम्। य॒ज्ञेन॑। य॒ज्ञः। यजु॑र्भि॒रिति॒ यजुः॑ऽभिः। यजू॑षि। साम॑भि॒रिति॒ साम॑ऽभिः। सामा॑नि। ऋ॒ग्भिरित्यृ॒क्ऽभिः। ऋचः॑। पु॒रो॒नु॒वा॒क्या᳖भि॒रिति॑ पुरःऽअनुवा॒क्याभिः। पु॒रो॒नु॒वा॒क्या॒ इति॑ पुरःऽअनुवा॒क्याः । भिः᳖या॒ज्या । ᳖या॒ज्याः। व॒ष॒ट्का॒रैरिति॑ वषट्ऽका॒रैः। राःकाष॒ट्का॒रा इति॑ वषट्ऽव ।आहु॑तिभि॒रित्याहु॑तिऽभिः। आहु॑तय॒ इत्याऽहु॑तयः। मे॒। कामा॑न्। सम्। अ॒र्ध॒य॒न्तु॒। भूः। स्वाहा॑ ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् लोगो ! (प्रथमाः) आदि में कहे पृथिव्यादि आठ वसु (द्वितीयैः) दूसरे ग्यारह प्राण आदि रुद्रों के साथ (द्वितीयाः) दूसरे ग्यारह रुद्र (तृतीयैः) तीसरे महीनों के साथ (तृतीयाः) तीसरे महीने (सत्येन) नाशरहित कारण के सहित (सत्यम्) नित्यकारण (यज्ञेन) शिल्पविद्यारूप क्रिया के साथ (यज्ञः) शिल्पक्रिया आदि कर्म (यजुर्भिः) यजुर्वेदोक्त क्रियाओं से युक्त (यजूंषि) यजुर्वेदोक्त क्रिया (सामभिः) सामवेदोक्त विद्या के साथ (सामानि) सामवेदस्थ क्रिया आदि (ऋग्भिः) ऋग्वेदस्थ विद्या क्रियाओं के साथ (ऋचः) ऋग्वेदस्थ व्यवहार (पुरोनुवाक्याभिः) अथर्ववेदोक्त प्रकरणों के साथ (पुरोनुवाक्याः) अथर्ववेदस्थ व्यवहार (याज्याभिः) यज्ञ के सम्बन्ध में जो क्रिया है, उन के साथ (याज्याः) यज्ञक्रिया (वषट्कारैः) उत्तम कर्मों के साथ (वषट्काराः) उत्तम क्रिया (आहुतिभिः) होम क्रियाओं के साथ (आहुतयः) आहुतियाँ (स्वाहा) सत्य क्रियाओं के साथ ये सब (भूः) भूमि में (मे) मेरी (कामान्) इच्छाओं को (समर्धयन्तु) अच्छे प्रकार सिद्ध करें, वैसे मुझ को आप लोग बोध कराओ ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापक और उपदेशक प्रथम वेदों को पढ़ा, पृथिव्यादि पदार्थ विद्याओं को जना, कार्य-कारण के सम्बन्ध से उनके गुणों को साक्षात् कराके, हस्तक्रिया से सब मनुष्यों को कुशल अच्छे प्रकार किया करें ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(प्रथमाः) आदिमाः पृथिव्यादयोऽष्टौ वसवः (द्वितीयैः) एकादशप्राणाद्यै रुद्रैः (द्वितीयाः) रुद्राः (तृतीयैः) द्वादशमासैः (तृतीयाः) (सत्येन) कारणेन (सत्यम्) (यज्ञेन) शिल्पक्रियया (यज्ञः) (यजुर्भिः) (यजूंषि) (सामभिः) (सामानि) (ऋग्भिः) (ऋचः) (पुरोनुवाक्याभिः) अथर्ववेदप्रकरणैः (पुरोनुवाक्याः) (याज्याभिः) यज्ञसम्बन्धक्रियाभिः (याज्याः) (वषट्कारैः) उत्तमकर्मभिः (वषट्काराः) (आहुतिभिः) (आहुतयः) (मे) मम (कामान्) इच्छाः (सम्) सम्यगर्थे (अर्धयन्तु) (भूः) अस्यां भूमौ (स्वाहा) सत्यक्रियया ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वासः ! यथा प्रथमा द्वितीयैर्द्वितीयास्तृतीयैस्तृतीयाः सत्येन सत्यं यज्ञेन यज्ञो यजुर्भिर्यजूंषि सामभिः सामान्यृग्भिर्ऋचः पुरोऽनुवाक्याभिः पुरोनुवाक्या याज्याभिर्याज्या वषट्कारैर्वषट्कारा आहुतिभिराहुतयः स्वाहैते सर्वे भूर्मे कामान्त्समर्धयन्तु तथा मां भवन्तो बोधयन्तु ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापकोपदेशकाः पूर्वं वेदानध्याप्य पृथिव्यादिपदार्थविद्याः संज्ञाप्य कारणकार्यसम्बन्धेन तद्गुणान् साक्षात् कारयित्वा हस्तक्रियया सर्वान् जनान् कुशलान् सम्पादयेयुः ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अध्यापक व उपदेशक यांनी प्रथम वेद वाचून पृथ्वी इत्यादींची पदार्थविद्या जाणावी. त्यानंतर कार्यकारण संबंधाने, क्रियात्मक रीतीने, प्रत्यक्ष व्यवहारात आणावे व सर्व माणसांना चांगल्या प्रकारे कुशल बनवावे.