वांछित मन्त्र चुनें

त्र॒या दे॒वा एका॑दश त्रयस्त्रि॒ꣳशाः सु॒राध॑सः। बृह॒स्पति॑पुरोहिता दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स॒वे। दे॒वा दे॒वैर॑वन्तु मा ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्र॒याः। दे॒वाः। एका॑दश। त्र॒य॒स्त्रि॒ꣳशा इति॑ त्रयःऽत्रि॒ꣳशाः। सु॒राध॑स॒ इति॑ सु॒ऽराध॑सः। बृह॒स्पति॑पुरोहिता॒ इति॒ बृह॒स्पति॑ऽपुरोहिताः। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। स॒वे। दे॒वाः। दे॒वैः। अ॒व॒न्तु॒। मा॒ ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:11


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उपदेशक विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (त्रयाः) तीन प्रकार के (देवाः) दिव्यगुणवाले (बृहस्पतिपुरोहिताः) जिनमें कि बड़ों का पालन करनेहारा सूर्य्य प्रथम धारण किया हुआ है, (सुराधसः) जिनसे अच्छे प्रकार कार्यों की सिद्धि होती वे (एकादश) ग्यारह (त्रयस्त्रिंशाः) तेंतीस दिव्यगुणवाले पदार्थ (सवितुः) सब जगत् की उत्पत्ति करनेहारे (देवस्य) प्रकाशमान ईश्वर के (सवे) परमैश्वर्य्ययुक्त उत्पन्न किये हुए जगत् में हैं, उन (देवैः) पृथिव्यादि तेंतीस पदार्थों से सहित (मा) मुझ को (देवाः) विद्वान् लोग (अवन्तु) रक्षा और बढ़ाया करें ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - जो पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, सूर्य्य, चन्द्र, नक्षत्र ये आठ और प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनञ्जय तथा ग्यारहवाँ जीवात्मा, बारह महीने, बिजुली और यज्ञ इन तेंतीस दिव्यगुणवाले पृथिव्यादि पदार्थों के गुण, कर्म और स्वभाव के उपदेश से सब मनुष्यों की उन्नति करते हैं, वे सर्वोपकारक होते हैं ॥११ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोपदेशकविषयमाह ॥

अन्वय:

(त्रयाः) त्रयाणामवयवभूताः (देवाः) दिव्यगुणाः (एकादश) एतत्संख्याताः (त्रयस्त्रिंशाः) त्र्यधिकास्त्रिंशत् (सुराधसः) सुष्ठु राधसः संसिद्धयो येभ्यस्ते (बृहस्पतिपुरोहिताः) बृहस्पतिः सूर्य्यः पुरः पूर्वो हितो धृतो येषु ते (देवस्य) प्रकाशमानेश्वरस्य (सवितुः) सकलजगदुत्पादकस्य (सवे) परमैश्वर्ययुक्ते प्रेरितव्ये जगति (देवाः) विद्वांसः (देवैः) द्योतमानैः (अवन्तु) रक्षन्तु (मा) माम् ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये त्रया देवा बृहस्पतिपुरोहिताः सुराधस एकादश त्रयस्त्रिंशाः सवितुर्देवस्य सवे वर्त्तन्ते, तैर्देवैः सहितं मा देवा अवन्तु, उन्नतं सम्पादयन्तु ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - ये पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशद्युचन्द्रनक्षत्राण्यष्टौ प्राणादयो दश वायव एकादशो जीवात्मा द्वादश मासा विद्युद्यज्ञश्चैतेषां दिव्यपृथिव्यादीनां पदार्थानां गुणकर्मस्वभावोपदेशेन सर्वान् मनुष्यानुत्कर्षयन्ति, ते सर्वोपकारका भवन्ति ॥११ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान जल, तेज, वायू, आकाश, सूर्य, चंद्र नक्षत्र हे आठ (वसू) , प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनंजय व अकरावा जीवात्मा (रुद्र) , बारा महिने (आदित्य) , तसेच विद्युत व यज्ञ अशा तेहतीस देवता अर्थात पृथ्वी इत्यादी पदार्थांच्या गुण, कर्म, स्वभावाचा उपदेश करतात ते सर्व माणसांची उन्नती करण्यास साह्यभूत ठरून सर्वांवर उपकार करतात.