सर॑स्वती॒ योन्यां॒ गर्भ॑म॒न्तर॒श्विभ्यां॒ पत्नी॒ सुकृ॑तं बिभर्ति। अ॒पा रसे॑न॒ वरु॑णो॒ न साम्नेन्द्र॑ श्रि॒यै ज॒नय॑न्न॒प्सु राजा॑ ॥९४ ॥
सर॑स्वती। योन्या॑म्। गर्भ॑म्। अ॒न्तः। अ॒श्विभ्या॒मित्य॒श्विऽभ्या॑म्। पत्नी॑। सुकृ॑त॒मिति॒ सुऽकृ॑तम्। बि॒भ॒र्ति॒। अ॒पाम्। रसे॑न। वरु॑णः। न। साम्ना॑। इन्द्र॑म्। श्रि॒यै। ज॒नय॑न्। अ॒प्स्वित्य॒प्ऽसु। राजा॑ ॥९४ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(सरस्वती) विदुषी (योन्याम्) (गर्भम्) (अन्तः) आभ्यन्तरे (अश्विभ्याम्) अध्यापकोपदेशकाभ्याम् (पत्नी) (सुकृतम्) पुण्यात्मकम् (बिभर्त्ति) (अपाम्) जलानाम् (रसेन) (वरुणः) श्रेष्ठः (न) इव (साम्ना) सन्धिना (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (श्रियै) शोभायै (जनयन्) उत्पादयन् (अप्सु) प्राणेषु (राजा) प्रकाशमानः ॥९४ ॥