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सर॑स्वती॒ योन्यां॒ गर्भ॑म॒न्तर॒श्विभ्यां॒ पत्नी॒ सुकृ॑तं बिभर्ति। अ॒पा रसे॑न॒ वरु॑णो॒ न साम्नेन्द्र॑ श्रि॒यै ज॒नय॑न्न॒प्सु राजा॑ ॥९४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सर॑स्वती। योन्या॑म्। गर्भ॑म्। अ॒न्तः। अ॒श्विभ्या॒मित्य॒श्विऽभ्या॑म्। पत्नी॑। सुकृ॑त॒मिति॒ सुऽकृ॑तम्। बि॒भ॒र्ति॒। अ॒पाम्। रसे॑न। वरु॑णः। न। साम्ना॑। इन्द्र॑म्। श्रि॒यै। ज॒नय॑न्। अ॒प्स्वित्य॒प्ऽसु। राजा॑ ॥९४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:94


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे योग करनेहारे पुरुष ! जैसे (सरस्वती) विदुषी (पत्नी) स्त्री अपने पति से (योन्याम्) योनि के (अन्तः) भीतर (सुकृतम्) पुण्यरूप (गर्भम्) गर्भ को (बिभर्त्ति) धारण करती है वा जैसे (वरुणः) उत्तम (राजा) राजा (अश्विभ्याम्) अध्यापक और उपदेशक के साथ (अपाम्) जलों के (रसेन) रस से (अप्सु) प्राणों में (साम्ना) मेल के (न) समान सुख से (इन्द्रम्) ऐश्वर्य को (श्रियै) लक्ष्मी के लिये (जनयन्) प्रकट करता हुआ विराजमान होता है, वैसे तू हो ॥९४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे धर्मपत्नी पति की सेवा करती है और जैसे राजा साम-दाम आदि से राज्य के ऐश्वर्य्य को बढ़ाता है, वैसे ही विद्वान् योग के उपदेशक की सेवा कर योग के अङ्गों की सिद्धियों को बढ़ाया करे ॥९४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(सरस्वती) विदुषी (योन्याम्) (गर्भम्) (अन्तः) आभ्यन्तरे (अश्विभ्याम्) अध्यापकोपदेशकाभ्याम् (पत्नी) (सुकृतम्) पुण्यात्मकम् (बिभर्त्ति) (अपाम्) जलानाम् (रसेन) (वरुणः) श्रेष्ठः (न) इव (साम्ना) सन्धिना (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (श्रियै) शोभायै (जनयन्) उत्पादयन् (अप्सु) प्राणेषु (राजा) प्रकाशमानः ॥९४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे योगिन् ! यथा सरस्वती पत्नी स्वपत्युर्योन्यामन्तस्सुकृतं गर्भं बिभर्त्ति, यथा वा वरुणो राजाऽश्विभ्यामपां रसेनाप्सु साम्ना न सुखेनेन्द्रं श्रियै जनयन् विराजते, तथा त्वं भवेः ॥९४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा धर्मपत्नी पतिं शुश्रूषते, यथा च राजा सामादिभी राज्यैश्वर्यमुन्नयति, तथैव विद्वान् योगोपदेशकं संसेव्य योगाङ्गैर्योगसिद्धिमुन्नयेत् ॥९४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी धर्मपत्नी पतीची सेवा करते व जसा राजा साम, दाम इत्यादींनी राज्याचे ऐश्वर्य वाढवितो तसे विद्वानांनी योगी लोकांची सेवा करून योगांगाने योगसिद्धी वाढवावी.