तेजो॑ऽसि॒ तेजो॒ मयि॑ धेहि वी॒र्य᳖मसि वी॒र्यं᳕ मयि॑ धेहि॒ बल॑मसि॒ बलं॒ मयि॑ धे॒ह्योजो॒ऽस्योजो॒ मयि॑ धेहि म॒न्युर॑सि म॒न्युं मयि॑ धेहि॒ सहो॑ऽसि॒ सहो॒ मयि॑ धेहि ॥९ ॥
तेजः॑। अ॒सि॒। तेजः॑। मयि॑। धे॒हि॒। वी॒र्य᳖म्। अ॒सि॒। वी॒र्य᳖म्। मयि॑। धे॒हि॒। बल॑म्। अ॒सि॒। बल॑म्। मयि॑। धे॒हि॒। ओजः॑। अ॒सि॒। ओजः॑। मयि॑। धे॒हि॒। म॒न्युः। अ॒सि॒। म॒न्युम्। मयि॑। धे॒हि॒। सहः॑। अ॒सि॒। सहः॑। मयि॑। धे॒हि॒ ॥९ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(तेजः) प्रागल्भ्यम् (असि) अस्ति। अत्र सर्वत्र पुरुषव्यत्ययः (तेजः) (मयि) (धेहि) (वीर्यम्) सर्वाङ्गस्फूर्तिः (असि) (वीर्यम्) (मयि) (धेहि) (बलम्) सर्वाङ्गदृढत्वम् (असि) (बलम्) (मयि) (धेहि) (ओजः) महाप्राणवत्त्वम् (असि) (ओजः) (मयि) (धेहि) (मन्युः) क्रोधः (असि) (मन्युम्) (मयि) (धेहि) (सहः) सहनम् (असि) (सहः) (मयि) (धेहि) ॥९ ॥