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उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽस्याश्वि॒नं तेजः॑ सारस्व॒तं वी॒र्य᳖मै॒न्द्रं बल॑म्। ए॒ष ते॒ योनि॒र्मोदा॑य त्वान॒न्दाय॑ त्वा॒ मह॑से त्वा ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒प॒या॒मगृ॑हीतः। अ॒सि॒। आ॒श्वि॒नम्। तेजः॑। सा॒र॒स्व॒तम्। वी॒र्य᳖म्। ऐ॒न्द्रम्। बल॑म्। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। मोदा॑य। त्वा॒। आ॒न॒न्दायेत्या॑ऽऽन॒न्दाय॑। त्वा॒। मह॑से। त्वा॒ ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:8


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजप्रजाजन ! जो तू (उपयामगृहीतः) प्राप्त धर्मयुक्त यमसम्बन्धी नियमों से संयुक्त (असि) है, जिस (ते) तेरा (एषः) यह (योनिः) घर है, उस तेरा जो (आश्विनम्) सूर्य और चन्द्रमा के रूप के समान (तेजः) तीक्ष्ण कोमल तेज (सारस्वतम्) विज्ञानयुक्त वाणी का (वीर्यम्) तेज (ऐन्द्रम्) बिजुली के समान (बलम्) बल हो, उस (त्वा) तुझ को (मोदाय) हर्ष के लिये (त्वा) तुझ को (आनन्दाय) परम सुख के अर्थ (त्वा) तुझे (महसे) महापराक्रम के लिये सब मनुष्य स्वीकार करें ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सूर्य-चन्द्रमा के समान तेजस्वी, विद्या पराक्रमवाले, बिजुली के तुल्य अति बलवान् होके आप आनन्दित हों और अन्य सब को आनन्द दिया करते हैं, वे यहाँ परमानन्द को भोगते हैं ॥८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(उपयामगृहीतः) उपगतैर्धर्म्यैर्यामैर्यमसम्बन्धभिर्नियमैर्गृहीतः संयुतः (असि) (आश्विनम्) अश्विनोः सूर्याचन्द्रमसोरिदम् (तेजः) प्रकाशः (सारस्वतम्) सरस्वत्या वेदवाण्या इदम् (वीर्यम्) पराक्रमः (ऐन्द्रम्) इन्द्रस्य विद्युत इदम् (बलम्) (एषः) (ते) तव (योनिः) गृहम् (मोदाय) हर्षाय (त्वा) त्वाम् (आनन्दाय) परमसुखाय (त्वा) (महसे) महते सत्काराय (त्वा) ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजप्रजाजन ! यस्त्वमुपयामगृहीतोऽसि यस्य ते एष योनिरस्ति, तस्य त आश्विनमिव तेजः सारस्वतं वीर्यमैन्द्रमिव बलञ्चास्तु, तं त्वा मोदाय त्वानन्दाय त्वा महसे च सर्वे स्वीकुर्वन्तु ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सूर्यचन्द्रवत् तेजस्विनो विद्यापराक्रमवन्तो विद्युद्वद्बलिष्ठा भूत्वा स्वयमानन्दिनोऽन्येभ्यो ह्यानन्दं प्रददति, तेऽत्र परमानन्दभोगिनो भवन्ति ॥८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सूर्यचंद्राप्रमाणे तेजस्वी, विद्यावान, पराक्रमी असतात ती विद्युतप्रमाणे अति बलवान असून, स्वतः आनंदी असतात व इतर सर्वांना आनंदित करतात ती परमानंद भोगतात.