वांछित मन्त्र चुनें

वेदे॑न रू॒पे व्य॑पिबत् सुतासु॒तौ प्र॒जाप॑तिः। ऋ॒तेन॑ स॒त्यमि॑न्द्रि॒यं वि॒पान॑ꣳ शु॒क्रमन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑स्येन्द्रि॒यमि॒दं पयो॒ऽमृतं॒ मधु॑ ॥७८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वेदे॑न। रू॒पेऽइति॑ रू॒पे। वि। अ॒पि॒ब॒त्। सु॒ता॒सु॒तौ। प्र॒जाप॑ति॒रिति॒ प्र॒जाऽप॑तिः। ऋ॒तेन॑। स॒त्यम्। इ॒न्द्रि॒यम्। वि॒पान॒मिति॑ वि॒ऽपान॑म्। शु॒क्रम्। अन्ध॑सः। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒यम्। इ॒दम्। पयः॑। अ॒मृत॑म्। मधु॑ ॥७८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:78


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब वेद के जाननेवाले कैसे होते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (प्रजापतिः) प्रजा का पालन करनेवाला जीव (ऋतेन) सत्य विज्ञानयुक्त (वेदेन) ईश्वरप्रकाशित चारों वेदों से (सुतासुतौ) प्रेरित अप्रेरित धर्माधर्म्म (रूपे) स्वरूपों को (व्यपिबत्) ग्रहण करे सो (इन्द्रस्य) ऐश्वर्य्ययुक्त जीव के (अन्धसः) अन्नादि के (विपानम्) विविध पान के निमित्त (शुक्रम्) पराक्रम देनेहारे (सत्यम्) सत्यधर्माचरण में उत्तम (इन्द्रियम्) धन और (इदम्) जलादि (पयः) दुग्धादि (अमृतम्) मृत्युधर्मरहित विज्ञान (मधु) मधुरादि गुणयुक्त पदार्थ और (इन्द्रियम्) ईश्वर के दिये हुए ज्ञान को प्राप्त होवे ॥७८ ॥
भावार्थभाषाः - वेदों को जाननेवाले ही धर्माधर्म्म के जानने तथा धर्म के आचरण और अधर्म के त्याग से सुखी होने को समर्थ होते हैं ॥७८ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ वेदज्ञाः कीदृशा इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(वेदेन) ईश्वरप्रकाशितेन वेदचतुष्टयेन (रूपे) सत्यानृतस्वरूपे (वि) (अपिबत्) गृह्णीयात् (सुतासुतौ) प्रेरिताप्रेरितौ धर्माधर्मौ (प्रजापतिः) प्रजापालको जीवः (ऋतेन) सत्यविज्ञानयुक्तेन (सत्यम्) सत्सु धर्माचरणेषु साधु (इन्द्रियम्) धनम् (विपानम्) विविधपाननिमित्तम् (शुक्रम्) पराक्रमप्रदम् (अन्धसः) अन्नादेः (इन्द्रस्य) ऐश्वर्ययुक्तस्य जीवस्य (इन्द्रियम्) इन्द्रेणेश्वरेण दत्तं ज्ञानम् (इदम्) जलादि (पयः) दुग्धादि (अमृतम्) मृत्युधर्मरहितं विज्ञानम् (मधु) माधुर्यगुणोपेतम् ॥७८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यः प्रजापतिर्ऋतेन वेदेन सुतासुतौ रूपे व्यपिबत्, स इन्द्रस्यान्धसो विपानं शुक्रं सत्यमिन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मध्विन्द्रियं चाप्नुयात् ॥७८ ॥
भावार्थभाषाः - वेदविद एव धर्माधर्मौ ज्ञातुं धर्माचरणेनाऽधर्मत्यागेन च सुखिनो भवितुं शक्नुवन्ति ॥७८ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - वेदांना जाणणारेच धर्माधर्माला जाणू शकतात. धर्माचे आचरण व अधर्माचा त्याग करून ते सुखी होऊ शकतात.