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आ य॑न्तु नः पि॒तरः॑ सो॒म्यासो॑ऽग्निष्वा॒त्ताः प॒थिभि॑र्देव॒यानैः॑। अ॒स्मिन् य॒ज्ञे स्व॒धया॒ मद॒न्तोऽधि॑ ब्रुवन्तु॒ ते᳖ऽवन्त्व॒स्मान् ॥५८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। य॒न्तु॒। नः॒। पि॒तरः॑। सो॒म्यासः॑। अ॒ग्नि॒ष्वा॒त्ताः। अ॒ग्नि॒ष्वा॒त्ता इत्य॑ग्निऽस्वा॒त्ताः। प॒थिभि॒रिति॑ प॒थिऽभिः॑। दे॒व॒यानै॒रिति॑ देव॒ऽयानैः॑। अ॒स्मिन्। य॒ज्ञे। स्व॒धया॑। मद॑न्तः। अधि॑। ब्रु॒व॒न्तु॒। ते। अ॒व॒न्तु॒। अ॒स्मान् ॥५८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:58


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सोम्यासः) चन्द्रमा के तुल्य शान्त शमदमादि गुणयुक्त (अग्निष्वात्ताः) अग्न्यादि पदार्थविद्या में निपुण (नः) हमारे (पितरः) अन्न और विद्या के दान से रक्षक जनक, अध्यापक और उपदेशक लोग हैं, (ते) वे (देवयानैः) आप्त लोगों के जाने-आने योग्य (पथिभिः) धर्मयुक्त मार्गों से (आ, यन्तु) आवें (अस्मिन्) इस (यज्ञे) पढ़ाने उपदेश करने रूप व्यवहार में वर्त्तमान होके (स्वधया) अन्नादि से (मदन्तः) आनन्द को प्राप्त हुए (अस्मान्) हम को (अधि, ब्रुवन्तु) अधिष्ठाता होकर उपदेश करें और पढ़ावें और हमारी (अवन्तु) सदा रक्षा करें ॥५८ ॥
भावार्थभाषाः - विद्यार्थियों को योग्य है कि विद्या और आयु में वृद्ध विद्वानों से विद्या और रक्षा को प्राप्त होकर सत्यवादी निष्कपटी परोपकारी उपदेशकों के मार्ग से जा आ के सब की रक्षा करें ॥५८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(आ) (यन्तु) आगच्छन्तु (नः) अस्माकम् (पितरः) पालका जनकाध्यापकोपदेशकाः (सोम्यासः) सोम इव शमदमादिगुणान्विताः (अग्निष्वात्ताः) गृहीताग्निविद्याः (पथिभिः) मार्गैः (देवयानैः) देवा आप्ता विद्वांसो यान्ति यैस्तैः (अस्मिन्) वर्त्तमाने (यज्ञे) उपदेशाध्यापनाख्ये (स्वधया) अन्नाद्येन (मदन्तः) आनन्दन्तः (अधि) अधिष्ठातृभावे (ब्रुवन्तु) उपदिशन्त्वध्यापयन्तु वा (ते) (अवन्तु) रक्षन्तु (अस्मान्) पुत्रान् विद्यार्थिनश्च ॥५८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये सोम्यासोऽग्निष्वात्ता नः पितरः सन्ति, ते देवयानैः पथिभिरायन्त्वस्मिन्यज्ञे वर्त्तमाना भूत्वा स्वधया मदन्तः सन्तोऽस्मानधिब्रुवन्त्वस्मानवन्तु ॥५८ ॥
भावार्थभाषाः - विद्यार्थिभिर्विद्यावयोवृद्धेभ्यो विद्यां रक्षां च प्राप्याप्तमार्गेण गत्वागत्य सर्वेषां रक्षा विधेया ॥५८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्यार्थ्यांनी वयोवृद्ध विद्वानांकडून विद्या प्राप्त करावी व सर्व बाजूंनी सुरक्षित व्हावे. सत्यवादी, निष्कपटी, परोपकारी उपदेशकांच्या मार्गाचे अनुसरण करून सर्वांचे रक्षण करावे.