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उप॑हूताः पि॒तरः॑ सो॒म्यासो॑ बर्हि॒ष्ये᳖षु नि॒धिषु॑ प्रि॒येषु॑। तऽआग॑मन्तु॒ तऽइ॒ह श्रु॑व॒न्त्वधि॑ ब्रुवन्तु॒ ते᳖ऽवन्त्व॒स्मान् ॥५७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उप॑हूता॒ इत्यु॑पऽहूताः। पि॒तरः॑। सो॒म्यासः॑। ब॒र्हि॒ष्ये᳖षु। नि॒धिष्विति॑ नि॒ऽधिषु॑। प्रि॒येषु॑। ते। आ। ग॒म॒न्तु॒। ते। इ॒ह। श्रु॒व॒न्तु॒। अधि॑। ब्रु॒वन्तु॑। ते। अ॒व॒न्तु॒। अ॒स्मान् ॥५७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:57


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सोम्यासः) ऐश्वर्य को प्राप्त होने के योग्य (पितरः) पितर लोग (बर्हिष्येषु) अत्युत्तम (प्रियेषु) प्रिय (निधिषु) रत्नादि से भरे हुए कोशों के निमित्त (उपहूताः) बुलाये हुए हैं (ते) वे (इह) इस हमारे समीप स्थान में (आ, गमन्तु) आवें, (ते) वे हमारे वचनों को (श्रुवन्तु) सुनें, वे (अस्मान्) हम को (अधि, ब्रुवन्तु) अधिक उपदेश से बोधयुक्त करें, (ते) वे हमारी (अवन्तु) रक्षा करें ॥५७ ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्यार्थीजन अध्यापकों को बुला उनका सत्कार कर, उनसे विद्याग्रहण की इच्छा करें, उन विद्यार्थियों को वे अध्यापक भी प्रीतिपूर्वक पढ़ावें और सर्वथा विषयासक्ति आदि दुष्कर्मों से पृथक् रक्खें ॥५७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(उपहूताः) समीप आहूताः (पितरः) जनकादयः (सोम्यासः) ये सोममैश्वर्यमर्हन्ति ते (बर्हिष्येषु) बर्हिःषूत्तमेषु साधुषु (निधिषु) धनकोशेषु (प्रियेषु) प्रीतिकारकेषु (ते) (आ) (गमन्तु) गच्छन्तु। अत्र बहुलं छन्दसि [अष्टा०२.४.७३] इति शपो लुक् (ते) (इह) (श्रुवन्तु) अत्र विकरणव्यत्ययेन शः। (अधि) आधिक्ये (ब्रुवन्तु) (ते) (अवन्तु) रक्षन्तु (अस्मान्) ॥५७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये सोम्यासः पितरो बर्हिष्येषु प्रियेषु निधिषूपहूतास्त इहागमन्तु, तेऽस्मद्वचांसि श्रुवन्तु, तेऽस्मानधिब्रुवन्तु, तेऽवन्तु ॥५७ ॥
भावार्थभाषाः - ये विद्यार्थिनोऽध्यापकानुपहूय सत्कृत्यैतेभ्यो विद्यां जिघृक्षेयुस्ताँस्ते प्रीत्याऽध्यापयेयुः, सर्वतो विषयासक्त्यादिभ्यो दुष्कर्मभ्यः पृथग्रक्षेयुश्च ॥५७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्यार्थी अध्यापकांना आमंत्रित करून त्यांचा सत्कार करतात व त्यांच्याकडून विद्या प्राप्त करण्याची इच्छा दर्शवितात त्या विद्यार्थ्यांना अध्यापकांनी प्रेमाने शिकवावे व विषयासक्ती आणि दुष्कर्मे यांच्यापासून सर्वस्वी दूर ठेवावे.