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त्वꣳसो॑म॒ प्र चि॑कितो मनी॒षा त्वꣳ रजि॑ष्ठ॒मनु॑ नेषि॒ पन्था॑म्। तव॒ प्रणी॑ती पि॒तरो॑ नऽइन्दो दे॒वेषु॒ रत्न॑मभजन्त॒ धीराः॑ ॥५२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। सो॒म॒। प्र। चि॒कि॒तः॒। म॒नी॒षा। त्वम्। रजि॑ष्ठम्। अनु॑। ने॒षि॒। पन्था॑म्। तव॑। प्रणी॑ती। प्रनी॒तीति॒ प्रऽनी॑ती। पि॒तरः॑। नः॒। इ॒न्दो॒ऽइति॑ इन्दो। दे॒वेषु॑। रत्न॑म्। अ॒भ॒ज॒न्त॒। धीराः॑ ॥५२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:52


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) ऐश्वर्य्ययुक्त ! (प्र, चिकितः) विज्ञान को प्राप्त (त्वम्) तू (मनीषा) उत्तम प्रज्ञा से जिस (रजिष्ठम्) अतिशय कोमल सुखदायक (पन्थाम्) मार्ग को (नेषि) प्राप्त होता है, उसको (त्वम्) तू मुझ को भी (अनु) अनुकूलता से प्राप्त कर। हे (इन्दो) आनन्दकारक चन्द्रमा के तुल्य वर्त्तमान ! जो (तव) तेरी (प्रणीती) उत्तम नीति के साथ वर्त्तमान (धीराः) योगीराज (पितरः) पिता आदि ज्ञानी लोग (देवेषु) विद्वानों में (नः) हमारे लिये (रत्नम्) उत्तम धन का (अभजन्त) सेवन करते हैं, वे हम को नित्य सत्कार करने योग्य हों ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - जो सन्तान माता-पिता आदि के सेवक होते हुए विद्या और विनय से धर्म का अनुष्ठान करते हैं, वे अपने जन्म की सफलता करते हैं ॥५२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(त्वम्) (सोम) विविधैश्वर्ययुक्त (प्र) (चिकितः) प्राप्तविज्ञान (मनीषा) सुसंस्कृतया प्रज्ञया। अत्र वाच्छन्दसीत्येकाराऽऽदेशो न। (त्वम्) (रजिष्ठम्) अतिशयेन ऋजु कोमलम् (अनु) (नेषि) नयसि। अत्र बहुलं छन्दसि [अष्टा०२.४.] इति शबभावः (पन्थाम्) पन्थानम् (तव) (प्रणीती) प्रकृष्टा चासौ नीतिश्च तया। अत्र सुपां सुलुग्० [अष्टा०७.१.३९] इति पूर्वसवर्णादेशः। (पितरः) पालकाः (नः) अस्मभ्यम् (इन्दो) इन्दुश्चन्द्र इव वर्त्तमान (देवेषु) विद्वत्सु (रत्नम्) (अभजन्त) भजन्तु (धीराः) ध्यानवन्तः ॥५२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सोम ! प्रचिकितस्त्वं मनीषा यं रजिष्ठं पन्थां नेषि, तं त्वं मामनुनय। हे इन्दो ! ये तव प्रणीती धीराः पितरो देवेषु नो रत्नमभजन्त, तेऽस्माभिर्नित्यं सेवनीयाः सन्तु ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - ये सन्तानाः पितृसेवकाः सन्तो विद्याविनयाभ्यां धर्ममनुतिष्ठन्ति, ते स्वजन्मसाफल्यं कुर्वन्ति ॥५२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी संताने माता-पिता इत्यादींची सेवा करून विद्या व विनयाने धर्माचे अनुष्ठान करतात त्यांचा जन्म सफल होतो.