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द्वे सृ॒तीऽअ॑शृणवं पितॄ॒णाम॒हं दे॒वाना॑मु॒त मर्त्या॑नाम्। ताभ्या॑मि॒दं विश्व॒मेज॒त्समे॑ति॒ यद॑न्त॒रा पि॒तरं॑ मा॒तरं॑ च ॥४७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द्वेऽइति॒ द्वे। सृ॒तीऽइति॑ सृ॒ती। अ॒शृ॒ण॒व॒म्। पि॒तॄ॒णाम्। अ॒हम्। दे॒वाना॑म्। उ॒त। मर्त्या॑नाम्। ताभ्या॑म्। इ॒दम्। विश्व॑म्। एज॑त्। सम्। ए॒ति॒। यत्। अ॒न्त॒रा। पि॒तर॑म्। मा॒तर॑म्। च॒ ॥४७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:47


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

जीवों के दो मार्ग हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (अहम्) मैं जो (पितॄणाम्) पिता आदि (मर्त्यानाम्) मनुष्यों (च) और (देवानाम्) विद्वानों की (द्वे) दो गतियों (सृती) जिनमें आते-जाते अर्थात् जन्म-मरण को प्राप्त होते हैं, उनको (अशृणवम्) सुनता हूँ (ताभ्याम्) उन दोनों गतियों से (इदम्) यह (विश्वम्) सब जगत् (एजत्) चलायमान हुआ (समेति) अच्छे प्रकार प्राप्त होता है (उत) और (यत्) जो (पितरम्) पिता और (मातरम्) माता से (अन्तरा) पृथक् होकर दूसरे शरीर से अन्य माता-पिता को प्राप्त होता है, सो यह तुम लोग जानो ॥४७ ॥
भावार्थभाषाः - दो ही जीवों की गति हैं−एक माता-पिता से जन्म को प्राप्त होकर संसार में विषय-सुख के भोगरूप और दूसरी विद्वानों के सङ्ग आदि से मुक्ति-सुख के भोगरूप है। इन दोनों गतियों के साथ ही सब प्राणी विचरते हैं ॥४७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

जीवानां द्वौ मार्गौ स्त इत्याह ॥

अन्वय:

(द्वे) (सृती) सरन्ति गच्छन्त्याऽऽगच्छन्ति जीवा ययोस्ते (अशृणवम्) शृणोमि (पितॄणाम्) जनकादीनाम् (अहम्) (देवानाम्) आचार्य्यादीनां विदुषाम् (उत) अपि (मर्त्यानाम्) मनुष्याणाम् (ताभ्याम्) (इदम्) (विश्वम्) सर्वं जगत् (एजत्) चलत्सत् (सम्) (एति) गच्छति (यत्) (अन्तरा) मध्ये (पितरम्) जनकम् (मातरम्) जननीम् (च) ॥४७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! अहं ये पितॄणां मर्त्यानां देवानां च द्वे सृती अशृणवं शृणोमि, ताभ्यामिदं विश्वमेजत्समेत्युत यत् पितरं मातरमन्तरा शरीरान्तरेणान्यौ मातापितरौ प्राप्नोति, तदेतद् यूयं विजानीत ॥४७ ॥
भावार्थभाषाः - द्वे एव जीवानां गती वर्त्तेते, एका मातापितृभ्यां जन्म प्राप्य संसारे विषयसुखभोगरूपा, द्वितीया विद्वत्सङ्गादिना मुक्तिसुखभोगाख्याऽस्ति, आभ्यां सहैव सर्वे प्राणिनश्चरन्ति ॥४७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जीवाची गती दोन प्रकारची असते. एक माता व पिता यांच्या पोटी जन्म घेऊन सांसारिक विषयसुख भोगरूपी गती व दुसरी विद्वानांच्या संगतीने मुक्ती सुखरूपी गती. या दोन गतीमध्येच सर्व प्राणी फिरत असतात.