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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को पुत्रादि कैसे पवित्र करने चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो जगदीश्वर (नः) हमारे मध्य में (पवित्रेण) शुद्ध आचरण से (पवमानः) पवित्र (विचर्षणिः) विविध विद्याओं का दाता है, (सः) सो (अद्य) आज हमको पवित्र करनेवाला और हमारा उपदेशक है, (सः) सो (पोता) पवित्रस्वरूप परमात्मा (मा) मुझको (पुनातु) पवित्र करे ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग ईश्वर के समान धार्मिक होकर अपने सन्तानों को धर्मात्मा करें, ऐसे किये विना अन्य मनुष्यों को भी वे पवित्र नहीं कर सकते ॥४२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः पुत्रादयः कथं पवित्राः करणीया इत्याह ॥
अन्वय:
(पवमानः) पवित्रः (सः) (अद्य) (नः) अस्माकं मध्ये (पवित्रेण) शुद्धाचरणेन (विचर्षणिः) विविधविद्याप्रद ईश्वरः (यः) (पोता) पवित्रकर्त्ता (सः) (पुनातु) (मा) माम् ॥४२ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - यो नो मध्ये पवित्रेण पवमानो विचर्षणिरस्ति, सोऽद्यास्माकं पवित्रकर्त्तोपदेशकश्चास्ति, स पोता मा पुनातु ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्या ईश्वरवद्धार्मिका भूत्वा स्वसन्तानान् धर्मात्मनः कुर्युरीदृशानन्तराऽन्यानपि ते पवित्रयितुं न शक्नुवन्ति ॥४२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी ईश्वराप्रमाणे धार्मिक बनून आपल्या संतानांना धर्मात्मा बनवावे. त्याशिवाय इतर माणसांना ते पवित्र बनवू शकत नाहीत.