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ए॒ताव॑द् रू॒पं य॒ज्ञस्य॒ यद्दे॒वैर्ब्रह्म॑णा कृ॒तम्। तदे॒तत्सर्व॑माप्नोति य॒ज्ञे सौ॑त्राम॒णी सु॒ते ॥३१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒ताव॑त्। रू॒पम्। य॒ज्ञस्य॑। यत्। दे॒वैः। ब्रह्म॑णा। कृ॒तम्। तत्। ए॒तत्। सर्व॑म्। आ॒प्नो॒ति॒। य॒ज्ञे। सौ॒त्रा॒म॒णी। सु॒ते ॥३१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:31


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (यत्) जिस (देवैः) विद्वानों और (ब्रह्मणा) परमेश्वर वा चार वेदों ने (यज्ञस्य) यज्ञ के (एतावत्) इतने (रूपम्) स्वरूप को (कृतम्) सिद्ध किया वा प्रकाशित किया है, (तत्) उस (एतत्) इस (सर्वम्) समस्त को (सौत्रामणी) जिसमें यज्ञोपवीतादि ग्रन्थियुक्त सूत्र धारण किये जाते हैं, उस (सुते) सिद्ध किये हुए (यज्ञे) यज्ञ में (आप्नोति) प्राप्त होता है, वह द्विज होने का आरम्भ करता है ॥३१ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् मनुष्यों को योग्य है कि जितना यज्ञ के अनुष्ठान का अनुसन्धान किया जाता है, उतना ही अनुष्ठान करके बड़े उत्तम यज्ञ के फल को प्राप्त होवें ॥३१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(एतावत्) एतत् परिमाणमस्य तत् (रूपम्) स्वरूपम् (यज्ञस्य) यजनकर्मणः (यत्) (देवैः) विद्वद्भिः (ब्रह्मणा) परमेश्वरेण वेदचतुष्टयेन वा (कृतम्) निष्पादितं प्रकाशितं वा (तत्) परोक्षम् (एतत्) प्रत्यक्षम् (सर्वम्) (आप्नोति) (यज्ञे) (सौत्रामणी) सूत्राणि यज्ञोपवीतादीनि मणिना ग्रन्थिना युक्तानि ध्रियन्ते यस्मिंस्तस्मिन् (सुते) सम्पादिते ॥३१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यो मनुष्यो यद्देवैर्ब्रह्मणा यज्ञस्यैतावद् रूपं कृतं तदेतत् सर्वं सौत्रामणी सुते यज्ञ आप्नोति, स द्विजत्वारम्भं करोति ॥३१ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिर्मनुष्यैर्यावद् यज्ञानुष्ठानानुसन्धानं क्रियेत तावदेवानुष्ठाय महोत्तमं यज्ञफलमाप्तव्यम् ॥३१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान माणसांनी यज्ञाच्या विधीचे जितके अनुसंधान केले जाऊ शकते तितके अनुष्ठान करावे व बृहद् यज्ञाचे फळ प्राप्त करावे.