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इडा॑भिर्भ॒क्षाना॑प्नोति सूक्तवा॒केना॒शिषः॑। श॒म्युना॑ पत्नीसंया॒जान्त्स॑मिष्टय॒जुषा॑ स॒ꣳस्थाम् ॥२९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इडा॑भिः। भ॒क्षान्। आ॒प्नो॒ति॒। सू॒क्त॒वा॒केनेति॑ सूक्तऽवा॒केन॑। आ॒शिष॒ इत्या॒ऽशिषः॑। शं॒युनेति॑ श॒म्ऽयुना॑। प॒त्नी॒सं॒या॒जानिति॑ पत्नीऽसंया॒जान्। स॒मि॒ष्ट॒य॒जुषेति॑ समिष्टऽय॒जुषा॑। स॒ꣳस्थामिति॑ स॒म्ऽस्थाम् ॥२९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:29


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

गृहस्थ पुरुषों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो विद्वान् (इडाभिः) पृथिवियों से (भक्षान्) भक्षण करने योग्य अन्नादि पदार्थों को (सूक्तवाकेन) जो सुन्दरता से कहा जाय उस के कहने से (आशिषः) इच्छा-सिद्धियों को (शंयुना) जिस से सुख प्राप्त होता है, उससे (पत्नीसंयाजान्) जो पत्नी के साथ मिलते हैं, उनको (समिष्टयजुषा) अच्छे इष्टसिद्धि करनेवाले यजुर्वेद के कर्म से (संस्थाम्) अच्छे प्रकार रहने के स्थान को (आप्नोति) प्राप्त होता है, वह सुखी क्यों न होवे ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थ लोग वेदविज्ञान ही से पृथिवी के राज्य-भोग की इच्छा और उसकी सिद्धि को प्राप्त होवें ॥२९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

गृहस्थैः पुरुषैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(इडाभिः) पृथिवीभिः। इडेति पृथिवीनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१) (भक्षान्) भक्षितुमर्हान् भोज्यान् पदार्थान् (आप्नोति) (सूक्तवाकेन) सुष्ठूच्यते तत् सूक्तवाकन्तेन (आशिषः) इच्छाः (शंयुना) सुखमयेन (पत्नीसंयाजान्) ये पत्न्या सह समिज्यन्ते तान् (समिष्टयजुषा) सम्यगिष्टं येन भवति तेन (संस्थाम्) सम्यक् तिष्ठन्ति यस्यां ताम् ॥२९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यो विद्वान्निडाभिर्भक्षान् सूक्तवाकेनाशिषः शंयुना पत्नीसंयाजान् समिष्टयजुषा संस्थामाप्नोति, स सुखी कथं न स्यात् ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - गृहस्था वेदविज्ञानेनैव पृथिवीराज्यभोगेच्छां तत्सिद्धिसंस्थितिं चाप्नुवन्तु ॥२९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - गृहस्थाश्रमातील लोकांना पृथ्वीवरील राज्य भोगाची इच्छा व त्याची सिद्धी वेदविज्ञानानेच प्राप्त होते.