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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग (यत्) जो (यवाः) यव हैं, उनको (पयसः) पानी वा दुग्ध के (रूपम्) रूप (कर्कन्धूनि) मोटे पके हुए बेरी के फलों के समान (दध्नः) दही के (रूपम्) स्वरूप (वाजिनम्) बहुत अन्न के सार के समान (सोमस्य) सोम ओषधि के (रूपम्) स्वरूप और (आमिक्षा) दूध, दही के संयोग से बने पदार्थ के समान (सौम्यस्य) सोमादि ओषधियों के सार होने के (रूपम्) स्वरूप को सिद्ध किया करो ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जिस-जिस अन्न का सुन्दररूप जिस प्रकार हो, उस-उस के रूप को उसी प्रकार सदा सिद्ध करें ॥२३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(पयसः) दुग्धस्य जलस्य (रूपम्) (यत्) ये (यवाः) (दध्नः) (रूपम्) (कर्कन्धूनि) कर्कन्धु फलानि स्थूलानि पक्वानि बदरीफलानीव (सोमस्य) (रूपम्) (वाजिनम्) बह्वन्नसाररूपम् (सौम्यस्य) सोमानामोषधिसाराणां भावस्य (रूपम्) (आमिक्षा) मधुराम्लादिसंयोगयुक्ता ॥२३ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यद्यवास्ते पयसो रूपं कर्कन्धूनीव दध्नो रूपं वाजिनमिव सोमस्य रूपमामिक्षेव सौम्यस्य रूपं सम्पादयत ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यस्य यस्यान्नस्य सुन्दरं रूपं यथा स्यात्तस्य तस्य रूपं तथा सदा सम्पादनीयम् ॥२३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या ज्या पदार्थांपासून जे जे उत्तम अन्न पदार्थ करता येतात त्या त्या प्रकारे ते तयार करावेत.