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आ॒स॒न्दी रू॒पꣳ रा॑जास॒न्द्यै वेद्यै॑ कु॒म्भी सु॑रा॒धानी॑। अन्त॑रऽउत्तरवे॒द्या रू॒पं का॑रोत॒रो भि॒षक् ॥१६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒स॒न्दीत्या॑ऽस॒न्दी। रू॒पम्। रा॒जा॒स॒न्द्या इति॑ राजऽआस॒न्द्यै। वेद्यै॑। कु॒म्भी। सु॒रा॒धानीति॑ सुरा॒ऽधानी॑। अन्त॑रः। उ॒त्त॒र॒वे॒द्या इत्यु॑त्तरऽवे॒द्याः। रू॒पम्। का॒रो॒त॒रः। भि॒षक् ॥१६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:16


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य को कैसे कार्य्य साधना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोगों को योग्य है कि यज्ञ के लिये (आसन्दी) जो सब ओर से सेवन की जाती है, वह (रूपम्) सुन्दर क्रिया (राजासन्द्यै) राजा लोग जिस में बैठते हैं, उस (वेद्यै) सुख-प्राप्ति करानेवाली वेदि के अर्थ (कुम्भी) धान्यादि पदार्थों का आधार (सुराधानी) जिसमें सोमरस धरा जाता है, वह गगरी (अन्तरः) जिससे जीवन होता है, यह अन्नादि पदार्थ (उत्तरवेद्याः) उत्तर की वेदी के (रूपम्) रूप को (कारोतरः) कर्मकारी और (भिषक्) वैद्य इन सब का संग्रह करो ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य जिस-जिस कार्य के करने की इच्छा करे, उस-उस के समस्त साधनों का सञ्चय करे ॥१६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्येण कथं कार्य्यं साध्यमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(आसन्दी) समन्तात् सन्यते सेव्यते या सा। ‘सन्’ धातोरौणादिको ‘द’ प्रत्ययस्ततो ‘ङीष्’ (रूपम्) सुक्रिया (राजासन्द्यै) राजानः सीदन्ति यस्यां तस्यै (वेद्यै) विदन्ति सुखानि यया तस्यै (कुम्भी) धान्यादिपदार्थाऽऽधारा (सुराधानी) सुरा सोमरसो धीयते यस्यां सा गर्गरी (अन्तरः) येनानिति प्राणिति सः (उत्तरवेद्याः) उत्तरा चासौ वेदी च तस्याः (रूपम्) (कारोतरः) कर्मकारी (भिषक्) वैद्यः ॥१६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! युष्माभिर्यज्ञायासन्दी रूपं राजासन्द्यै वेद्यै कुम्भी सुराधान्युत्तरवेद्या अन्तरो रूपं कारोतरो भिषक् चैतानि संग्राह्याणि ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यो यद्यत्कार्यं कर्त्तुमिच्छेत्, तस्य तस्य सकलसाधनानि सञ्चिनुयात् ॥१६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसे जे जे कार्य करू इच्छितात त्या त्या सर्व साधनांचा त्यांनी संग्रह करावा.