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सोम॑स्य रू॒पं क्री॒तस्य॑ परि॒स्रुत्परि॑षिच्यते। अ॒श्विभ्यां॑ दु॒ग्धं भे॑ष॒जमिन्द्रा॑यै॒न्द्रꣳ सर॑स्वत्या ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सोम॑स्य। रू॒पम्। क्री॒तस्य॑। प॒रि॒स्रुदिति॑ परि॒ऽस्रुत्। परि॑। सि॒च्य॒ते॒। अ॒श्विभ्या॒मित्य॒श्विऽभ्या॑म्। दु॒ग्धम्। भे॒ष॒जम्। इन्द्रा॑य। ऐ॒न्द्रम्। सर॑स्वत्या ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कुमारी कन्याओं को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री लोगो ! जैसे (सरस्वत्या) विदुषी स्त्री से (क्रीतस्य) ग्रहण किए हुए (सोमस्य) सोमादि ओषधिगण का (परिस्रुत्) सब ओर से प्राप्त होनेवाला रस (रूपम्) सुस्वरूप और (अश्विभ्याम्) वैदिक विद्या में पूर्ण दो विद्वानों के लिये (दुग्धम्) दुहा हुआ (भेषजम्) औषधरूप दूध तथा (इन्द्राय) ऐश्वर्य चाहनेवाले के लिये (ऐन्द्रम्) विद्युत्सम्बन्धी विशेष ज्ञान (परिषिच्यते) सब ओर से सिद्ध किया जाता है, वैसे तुम भी आचरण करो ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब कुमारियों को योग्य है कि ब्रह्मचर्य से व्याकरण, धर्म्म, विद्या और आयुर्वेदादि को पढ़, स्वयंवर विवाह कर, ओषधियों को और औषधवत् अन्न और दाल कढ़ी आदि को अच्छा पका, उत्तम रसों से युक्त कर, पति आदि को भोजन करा तथा स्वयं भोजन करके बल, आरोग्य की सदा उन्नति किया करें ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कुमारीभिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(सोमस्य) सोमलताद्योषधिसमूहस्य (रूपम्) उत्तमस्वरूपम् (क्रीतस्य) गृहीतस्य (परिस्रुत्) यः परितः सर्वत स्रवति प्राप्नोति स रसः (परि) सर्वतः (सिच्यते) (अश्विभ्याम्) वैदिकविद्याव्यापिभ्यां विद्वद्भ्याम् (दुग्धम्) गवादिभ्यः पयः (भेषजम्) सर्वौषधम् (इन्द्राय) ऐश्वर्येच्छुकाय (ऐन्द्रम्) इन्द्रो विद्युद्देवता यस्य तद् विज्ञानम् (सरस्वत्या) प्रशस्तविद्याविज्ञानयुक्तया पत्न्या ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रियो ! यथा सरस्वत्या विदुष्या क्रीतस्य सोमस्य परिस्रुद् रूपमश्विभ्यां दुग्धं भेषजमिन्द्रायैन्द्रं परिषिच्यते, तथा यूयमप्याचरत ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सर्वाभिः कुमारीभिर्ब्रह्मचर्य्येण व्याकरणधर्म्मविद्यायुर्वेदादीनधीत्य स्वयंवरविवाहं कृत्वा प्रशस्तान्यौषधान्यौषधवदन्नव्यञ्जनानि च परिपच्य सुरसैः संयोज्य पत्यादीन् सम्भोज्य स्वयं च भुक्त्वा बलारोग्योन्नतिः सततं कार्या ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व कुमारिकांनी ब्रह्मचर्य पाळून व्याकरण, धर्म, विद्या व आयुर्वेद इत्यादींचे अध्ययन करावे. स्वयवर विवाह करावा. औषधांचे यथावत सेवन करावे. अन्न, वरण, कढी इत्यादी रसयुक्त पदार्थ चांगल्याप्रकारे बनवावे. पतीचे भोजन झाल्यानंतर स्वतः जेवावे. आरोग्य व बल वाढवावे.