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आ॒ति॒थ्य॒रू॒पं मास॑रं महावी॒रस्य॑ न॒ग्नहुः॑। रू॒पमु॑प॒सदा॑मे॒तत्ति॒स्रो रात्रीः॒ सुरासु॑ता ॥१४ ॥

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पद पाठ

आ॒ति॒थ्य॒रू॒पमित्या॑तिथ्यऽरू॒पम्। मास॑रम्। म॒हा॒वी॒रस्येति॑ महाऽवी॒रस्य॑। न॒ग्नहुः॑। रू॒पम्। उ॒प॒सदा॒मित्यु॑प॒ऽसदा॑म्। ए॒तत्। ति॒स्रः। रात्रीः॑। सुरा॑। आसु॒तेत्याऽसु॑ता ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे जन कीर्तिवाले होते हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (मासरम्) जिससे अतिथिजन महीनों में रमण करते हैं, ऐसे (आतिथ्यरूपम्) अतिथियों का होना वा उनका सत्काररूप कर्म वा (महावीरस्य) बड़े वीर पुरुष का (नग्नहुः) जो नग्न अकिञ्चनों का धारण करता है, वह (रूपम्) रूप वा (उपसदाम्) गृहस्थादि के समीप में भोजनादि के अर्थ ठहरनेहारे अतिथियों का (तिस्रः) तीन (रात्रीः) रात्रियों में निवास कराना (एतत्) यह रूप वा (सुरा) सोमरस (आसुता) सब ओर से सिद्ध की हुई क्रिया है, उन सब का तुम लोग ग्रहण करो ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धार्मिक, विद्वान् अतिथियों का सत्कार, सङ्ग और उपदेशों को और वीरों को मान्य तथा द्ररिद्रों को वस्त्रादि दान, अपने भृत्यों को निवास देना और सोमरस की सिद्धि को सदा करते हैं, वे कीर्तिमान् होते हैं ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशा जना यशस्विनो भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(आतिथ्यरूपम्) अतिथीनां भावः कर्म्म वाऽऽतिथ्यं तद्रूपं च तत् (मासरम्) येनाऽतिथयो मासेषु रमन्ते तत् (महावीरस्य) महांश्चासौ वीरश्च तस्य (नग्नहुः) यो नग्नान् जुहोत्यादत्ते (रूपम्) सुरूपकरणम् (उपसदाम्) य उपसीदन्ति तेषामतिथीनाम् (एतत्) (तिस्रः) (रात्रीः) (सुरा) सोमरसः (आसुता) समन्तान्निष्पादिता ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यानि मासरमातिथ्यरूपं महावीरस्य नग्नहू रूपमुपसदां तिस्रो रात्रीर्निवासनमेतद् रूपं सुता सुराऽऽसुता च सन्ति, तानि यूयं गृह्णीत ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या धार्मिकाणां विदुषामतिथीनां सत्कारसङ्गोपदेशान् वीराणां च मान्यं दरिद्रेभ्यो वस्त्रादिदानं स्वभृत्यानामुत्तमं निवासदानं सोमरससिद्धिं च सततं कुर्वन्ति, ते यशस्विनो जायन्ते ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे धार्मिक विद्वान अतिथींचा सत्कार करतात. त्यांची संगत धरतात, त्यांच्या उपदेशांना आणि वीरांना मान्यता देतात, तसेच दरिद्री लोकांना वस्र वगैरेंचे दान करून आपल्या नोकरांच्या निवासस्थानांची सोय करतात, सोमरसाची सिद्धी प्राप्त करून घेतात, त्यांना कीर्ती प्राप्त होते.