वांछित मन्त्र चुनें

दी॒क्षायै॑ रू॒पꣳ शष्पा॑णि प्राय॒णीय॑स्य॒ तोक्मा॑नि। क्र॒यस्य॑ रू॒पꣳ सोम॑स्य ला॒जाः सो॑मा॒शवो॒ मधु॑ ॥१३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दी॒क्षायै॑ रू॒पम्। शष्पा॑णि। प्रा॒य॒णीय॑स्य। प्रा॒य॒नीय॒स्येति॑ प्रऽअय॒नीय॑स्य। तोक्मा॑नि। क्र॒यस्य॑। रू॒पम्। सोम॑स्य। ला॒जाः। सो॒मा॒शव॒ इति॑ सोमऽअ॒ꣳशवः॑। मधु॑ ॥१३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:13


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे मनुष्य सुखी होते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (प्रायणीयस्य) जिस व्यवहार से उत्तम सुख को प्राप्त होते हैं, उसमें होनेवाले को (दीक्षायै) यज्ञ के नियम-रक्षा के लिये (रूपम्) सुन्दर रूप और (तोक्मानि) अपत्य (क्रयस्य) द्रव्यों के बेचने का (रूपम्) रूप (शष्पाणि) छाँट-फटक शुद्ध कर ग्रहण करने योग्य धान्य (सोमस्य) सोमलतादि के रस के सम्बन्धी (लाजाः) परिपक्व फूले हुए अन्न (सोमांशवः) सोम के विभाग और (मधु) सहत हैं, उनको तुम लोग विस्तृत करो ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में पूर्व मन्त्र से ‘अतन्वत’ इस क्रियापद की अनुवृत्ति आती है, जो मनुष्य यज्ञ के योग्य सन्तान और पदार्थों को सिद्ध करते हैं, वे इस संसार में सुख को प्राप्त होते हैं ॥१३ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशा जनाः सुखिनो भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(दीक्षायै) यज्ञसाधननियमपालनाय (रूपम्) (शष्पाणि) आहत्य संशोध्य ग्राह्याणि धान्यानि (प्रायणीयस्य) प्रकृष्टं सुखं यन्ति येन व्यवहारेण तत्र भवस्य (तोक्मानि) अपत्यानि। तोक्मेत्यपत्यनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.२) (क्रयस्य) द्रव्यविक्रयस्य (रूपम्) (सोमस्य) ओषधीरसस्य (लाजाः) प्रफुल्लिता व्रीहयः (सोमांशवः) सोमस्यांशाः (मधु) क्षौद्रम् ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यानि प्रायणीयस्य दीक्षायै रूपं तोक्मानि क्रयस्य रूपं शष्पाणि सोमस्य लाजाः सोमांशवो मधु च सन्ति, तानि यूयमतन्वत ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रातन्वतेति क्रियापदं पूर्वमन्त्रादनुवर्त्तते। ये मनुष्या यज्ञाऽर्हाण्यपत्यानि वस्तूनि च सम्पादयन्ति, तेऽत्र सुखं लभन्ते ॥१३ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात पूर्वीच्या मंत्रातील ‘अतन्वत’ या क्रियापदाची अनुवृत्ती झालेली आहे. जी माणसे यज्ञासाठी योग्य पदार्थ प्राप्त करतात, तसेच उत्तम संताने निर्माण करतात, ती या जगात सुख प्राप्त करू शकतात.