ऊर्क् च॑ मे सू॒नृता॑ च मे॒ पय॑श्च मे॒ रस॑श्च मे घृ॒तं च॑ मे॒ मधु॑ च मे॒ सग्धि॑श्च मे॒ सपी॑तिश्च मे कृ॒षिश्च॑ मे॒ वृष्टि॑श्च मे॒ जैत्रं॑ च म॒ऽऔद्भि॑द्यं च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥९ ॥
ऊर्क्। च॒। मे॒। सू॒नृता॑। च॒। मे॒। पयः॑। च॒। मे॒। रसः॑। च॒। मे॒। घृ॒तम्। च॒। मे॒। मधु॑। च॒। मे॒। सग्धिः॑। च॒। मे॒। सपी॑ति॒रिति॒ सऽपी॑तिः। च॒। मे॒। कृ॒षिः। च॒। मे॒। वृष्टिः॑। च॒। मे॒। जैत्र॑म्। च॒। मे॒। औद्भि॑द्य॒मित्यौत्ऽभि॑द्यम्। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥९ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(ऊर्क्) सुसंस्कृतमन्नम् (च) सुगन्ध्यादियुक्तम् (मे) (सूनृता) प्रिया वाक् (च) सत्या (मे) (पयः) दुग्धम् (च) उत्तमं पक्वमौषधम् (मे) (रसः) सर्वद्रव्यसारः (च) महौषधीभ्यो निष्पादितः (मे) (घृतम्) आज्यम् (च) सुसंस्कृतम् (मे) (मधु) क्षौद्रम् (च) शर्करादिकम् (मे) (सग्धिः) समानभोजनम् (च) भक्ष्यादिकम् (मे) (सपीतिः) समाना पीतिः पानं यस्यां सा (च) चूष्यम् (मे) (कृषिः) भूमिकर्षणम् (च) शस्यविशेषाः (मे) (वृष्टिः) जलवर्षणम् (च) आहुतिभिः संस्क्रिया (मे) (जैत्रम्) जेतुं शीलम् (च) सुशिक्षितं सेनादिकम् (मे) (औद्भिद्यम्) उद्भिदां पृथिवीं भित्त्वा जातानां भावम् (च) फलादिकम् (मे) (यज्ञेन) सर्वरसपदार्थवर्द्धकेन कर्मणा (कल्पन्ताम्) ॥९ ॥