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धा॒म॒च्छद॒ग्निरिन्द्रो॑ ब्र॒ह्मा दे॒वो बृह॒स्पतिः॑। सचे॑तसो॒ विश्वे॑ दे॒वा य॒ज्ञं प्राव॑न्तु नः शु॒भे ॥७६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

धा॒म॒च्छदिति॑ धाम॒ऽछत्। अ॒ग्निः। इन्द्रः॑। ब्र॒ह्मा। दे॒वः। बृह॒स्पतिः॑। सचे॑तस॒ इति॑ सऽचे॑तसः। विश्वे॑। दे॒वाः। य॒ज्ञम्। प्र। अ॒व॒न्तु॒। नः॒। शु॒भे ॥७६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:76


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सब विद्वानों को जो करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (देवः) विद्वान् (धामच्छत्) जन्म, स्थान, नाम का विस्तार करनेहारे (अग्निः) पावक (इन्द्रः) विद्युत् के समान अमात्य और राजा (ब्रह्मा) चारों वेदों का जाननेहारा (बृहस्पतिः) वेदवाणी का पठन-पाठन से पालन करनेहारा (सचेतसः) विज्ञानवाले (विश्वे, देवाः) सब विद्वान् लोग (नः) हमारे (शुभे) कल्याण के लिये (यज्ञम्) विज्ञान योगरूपा क्रिया को (प्र, अवन्तु) अच्छे प्रकार कामना करें ॥७६ ॥
भावार्थभाषाः - सब विद्वान् लोग सब मनुष्यादि प्राणियों के कल्याणर्थ निरन्तर सत्य उपदेश करें ॥७६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सर्वविद्वत्कर्त्तव्यमाह ॥

अन्वय:

(धामच्छत्) यो धामानि छादयति संवृणोति सः (अग्निः) विद्वान् (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (ब्रह्मा) चतुर्वेदवित् (देवः) विद्यादाता (बृहस्पतिः) अध्यापकः (सचेतसः) ये चेतसा प्रज्ञया सह वर्त्तन्ते (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (यज्ञम्) उक्तम् (प्र) (अवन्तु) कामयन्ताम् (नः) अस्माकम् (शुभे) कल्याणाय ॥७६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! देवो धामच्छदग्निरिन्द्रो ब्रह्मा बृहस्पतिश्चेमे सचेतसो विश्वे देवाः नः शुभे यज्ञं प्रावन्तु ॥७६ ॥
भावार्थभाषाः - सर्वे विद्वांसः सर्वेषां सुखाय सततं सत्योपदेशान् कुर्वन्तु ॥७६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व विद्वान लोकांनी सर्व मानव प्राण्यांच्या कल्याणासाठी सदैव सत्याचा उपदेश करावा.